Tuesday, December 7, 2010

PUJYA GURUJI KA HUMARE GHAR AAGMAN..........

राधे-राधे,
जैसा की मैंने पहले आप लोगों को बताया था की कैसे हम लोगों को प.पु गुरूजी ने अद्ध्यात्म के मार्ग में लगाया, उसी समय गुरूजी ने माँ को कहा था की हम तुम्हारे घर आयेंगे, माँ उस समय थोडा सोच में pad, बस माँ के मन में क्षण मात्र के लिए कुछ विचार आया, की गुरूजी समझ गए माँ की मनःस्थिति और तुरंत बोले अब तू एक यज्ञ करवाना तब हम तेरे यहाँ आयेंगे, माँ ने सोचा हम लोग कहाँ यज्ञ करवा सकते  है और वो भी गुरूजी से?, मगर अब गुरूजी का कथन था तो सत्य तो होना ही था तो फिर तो सब किस  तरह होता गया वो तो वो ही जाने, ६ महीनो के अन्दर ही हम लोगों को यज्ञ करवाने का मौका आगया और गुरूजी की कृपा से लोग अपने आप जुड़ते गए गुरूजी के प्रताप से उन्ही के संरक्षण में ५ दिनों तक यज्ञ चला, पूरा वातावरण खुशनुमा हो गया, कहाँ से क्या इंतज़ाम होता गया पता ही नहीं चला, जिस दिन यज्ञ की पूर्णाहुति का दिन था, उसदिन  गुरूजी ने सभी कार्यकर्ताओं को अपने तरफ से त्रोफियाँ प्रदान कीं  व सभी को मुद्रा भी पुरूस्कार स्वरुप प्रदान की जो अभी तक हम सभी ने सुरक्षित रखी हुयी है, पूर्णाहुति वाले दिन सुबह गुरूजी ने कन्या भोज कराया ऐसा लग रहा था जैसे छोटी-२ देवियाँ साक्षात् आसमान से उतर आयीं हैं और सभी भक्त  जनो को आशीर्वाद  प्रदान  कर रही हैं, जब  सुबह भोग  तैयार  हुआ  तो गुरूजी ने गौसेवा करवाने को कहा हम सब सोच ही रहे  थे की गौमाता कहाँ से आएँगी , तभी  एक आश्चर्यजनक बात हुयी, एक काले रंग की सुन्दर सी गौमाता अपने  बछड़े के साथ खुद-ब-खुद आगईं और गुरूजी के पास आकर खड़ी हो गयीं जिन्हें देख कर गुरूजी एकदम खुश हो उठ कर खड़े हो गए और बोले "अरे! ये तो श्यामा हैं, कैसी हो? अच्छा इसे भी लाई ho?" और फिर उन्हें प्यार से हाथ फेरने लगे व खुद अपने हाथों से भोजन कराया ( मैं आप लोगों को इस समय के फोटोग्राफ्स भी उपलब्ध करूंगी मगर थोड़े दिनों बाद), कन्या भोज के बाद अन्य सभी ने भी भोग पाया, गुरूजी विश्राम के लिए चले गए थे २ बजे से फिर यज्ञ की पूजा शुरू होने वाली थी हम सब यज्ञ मंडप के पास ही अपने-अपने कामो में लगे हुए थे, घर पर माँ व कुछ रिश्तेदार थे, तभी अचानक गुरूजी की गाडी हमारे पास से निकली और गुरूजी ने भाई से कहा की चलो रास्ता दिखाओ हम तुम्हारे घर आरहे हैं तभी मैं और भाई जल्दी से गाड़ी में बैठ गए और थोडा लम्बे रास्ते से उनको ले कर गए जब तक दीदी पास वाले रास्ते से घर पहुँच गयीं और जाकर सबको खबर कर दी और जल्दी-२ उनके स्वागत का जो भी बन पड़ा इन्तेजाम किया गया, माँ को तो सब कुछ अविश्वसनीय लग रहा था, गुरूजी आये पूरे घर में घूमे और आकर हॉल में आसन पर बैठ गए तब तक आस-पास के लोग भी उन्हें देख कर आगये थे और, हॉल लोगों से पूरा खचाखच भर गया था, गुरूजी ने सब से बातें की और कुछ लोगों की समस्याओं का निवारण भी किया, शायद १ घंटा गुरूजी घर में रहे फिर सबसे कहने लगे चलो हवन का समय हो रहा है और उठ कर गाड़ी में बैठ के चले गए, माँ तो कुछ भी बोल ही नहीं पा रही थीं न ही उन्हें कुछ समझ आरहा था बस यही कहती जा रही थीं की हम गुरूजी की सेवा ठीक से नहीं कर पा रहे हैं, मगर जाते समय गुरूजी बोले तेरा सब ठीक है, और चले गए अपना वचन पूरा कर के जो उन्होंने माँ को कुछ समय पहले दिया था.
              हम सब भी यज्ञ स्थल पहुँच गए थे हवन शुरू हो गया, शाम को यज्ञ की पूर्णाहुति थी अभी तक तो गुरूजी एक बार भी यज्ञ मंडप के अन्दर नहीं गए थे, बस दूर ही बैठे देखते रहते थे, शाम को पूर्णाहुति के समय गुरूजी यज्ञ मंडप के अन्दर पहुंचे और जैसे ही गुरूजी ने आहुति दी की अग्नि देवता जैसे अपने उत्साह को रोक न पाए हों और यज्ञवेदी से लपटें मंडप की छत तक पहुँचाने लगीं बस गुरूजी तुरंत ही वापस लौट गए गुरूजी का पूरा मुखमंडल लाल हो गया था, और गुरूजी गाड़ी में बैठ कर विश्राम स्थल रवाना हो गए थे, सब ने देखा गुरूजी के जाते ही लपटें वापस अपने स्वाभाविक स्वरुप में आगईं थी लोग जैजैकार कर रहे थे इस प्रकार यहाँ गुरूजी का यज्ञ निर्विघ्न गुरूजी की व बाँके बिहारी की कृपा से पूर्ण हुआ व सभी आरती के बाद गुरूजी के दर्शनों को प्रस्थान करने लगे. इस तरह गुरूजी ने माँ को दिए अपने दोनों वचनों को पूर्ण कर दिया. प.पु.गुरुगी के चरणों में शत-शत प्रणाम, गुरूजी हम आपको बहुत याद करते हैं| जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव. भगवान की कृपा सब पर बनी रहे इसी कामना के साथ आज यहीं विश्राम लेती हूँ जय गुरुदेव.

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