राधे-राधे,
आज मुझे कुछ और याद आया,प.पु गुरूजी के बारे में बताने के लिए, ये बात एक समय गुरु पूर्णिमा महोत्सव की है, मै गुरु पूर्णिमा के लिए पहले ही जबलपुर पहुँच गयी थी, उत्सव से एक दिन पहले हम सब सत्संग के लिए आश्रम में बैठे थे की गुरूजी ने मुझे अचानक अन्दर बुलाया और मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और कहा तेरी तबियत ठीक है न? तो मैंने कहा जी गुरूजी बस थोडा कोल्ड है और कुछ नहीं, मगर उन्होंने तभी दीदी को बुलाया और कहा की तेरी बहन की तबियत ठीक नहीं है तुम लोग अभी ही घर लौट जाओ, तो दीदी ने कहा की बस गुरूजी सत्संग के बाद निकल जायेंगे, मगर गुरूजी ने तुरंत जाने को कहा, और कहा सम्हाल के ले जाना ये बीमार है, हम लोग वहां से निकल गए तभी हम घर फ़ोन करने के लिए रुके मगर मुझे इतनी देर में तेज ठण्ड लगने लगी और हमे बिना बात किये घर वापस आना पड़ा, 2nd floor तक चदना मुश्किल होने लगा, ऊपर जाते ही मुझे इतनी तेज ठण्ड लगने लगी की दीदी और उनकी फ्रेंड (जो उनके साथ ही रहती थी) ने सारे ओढ़ने के कपडे मेरे ऊपर डाल दिए मगर मेरी ठण्ड कम ही नहीं हो रही थी, रात भर दोनों मेरे हाथ पैर मलती रहीं सिकाई कर्रती रहीं मगर कुछ फायदा नहीं हो रहा था, पूरी रात कोई भी नहीं सोया था, सुबह गुरुपूर्णिमा महोत्सव में पहुँचाने की चिंता होने लगी, गुरूजी से हम लोग प्रार्थना कर रहे थे, अब सुबह हुई सब को नींद आगई मुझे भी अब थोड़ी गर्मी आनी शुरू हो गयी थी तो हम सब सो गए, सुबह ७-७:३० पर माँ और एक आंटी आगये, उनकी ट्रेन थोडा देर से पहुंची थी इस लिए हम भी उनके आने पर ही उठे अब उनके आते ही देखिये भगवान् की लीला, ऐसी तेज बारिश शुरू हो गयी की लगे की अब कैसे आश्रम पहुंचेंगे? खैर फिर ये हुआ की दीदी ने कहा, मै तो पहले निकल जाती हूँ और कोई टेक्सी वगैरह ले कर आती हूँ तब तक आप लोग सब तैयार हो जाइये हम सब तैयार हो गए मगर तभी दीदी ने आकर बताया की कालोनी से मेन रोड तक जाने के बीच में एक बरसाती नाला पड़ता है जो भर गया है और उसका बहाव इतना तेज था की एक आदमी की bike व वो खुद भी बह गया है, इसका मतलब साफ़ था की अभी निकल पाना मुश्किल था, दीदी और उनकी फ्रेंड दोनों वहीँ खड़े हो कर नाले के उतरने का इंतज़ार कर रहे थे मगर वो तो उफान में ही आता जा रहा था, बारिश भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी, पता नहीं गुरूजी क्या परीक्षा ले रहे थे हमारी, तभी दीदी से नहीं रहा गया और उन्होंने अपनी फ्रेंड को घर जाने को कह खुद ने गुरूजी को याद कर नाला पार कर लिया और गीले कपड़ों से ही आश्रम के लिए रवाना हो गयीं, फ्रेंड ने हमे आकर बताया सब, हम क्या कर सकते थे, हम young थे हम तो एक बार को निकल भी जाते मगर उन दोनों को कैसे पार कराते , अब तो बस बारिश रुकने व नाले के उतरने के इंतज़ार के अलावा कुछ नहीं हो सकता था, हम लोग घर में ही बैठ कर गुरूजी से प्रार्थना करने लगे, लगभग दोपहर के दो बज गए थे, बारिश अब रुक गयी थी मगर नाला अभी भी जस का तस बह रहा था, बार -२ हम दोनों जाकर condition देख कर आते मगर, कोई फायदा न होता अब शाम के चार बज चुके थे हम सब उदास थे, मगर फिर भी मन में कहीं न कहीं एक आस थी की पहुँच जायेंगे ही, अब एक घंटा और निकला, अब माँ वगैरह ने भी कहा की चलो भगवान् का नाम ले कर चलते हैं और जैसे ही थोडा नाला उतरेगा हम पार कर निकल जायेंगे, अब चाहे रात ही क्यों न हो जाए दर्शन तो करने ही हैं गुरूजी के, वैसे आश्रम शहर के एक छोर पे है और हमारा घर दूसरे छोर पे वो भी शहर से काफी दूर, खैर अब निश्चय कर हम चारों निकल पड़े, नाला थोडा नीचे आगया था मगर इतना नहीं की कोई पैदल पार कर सके क्योंकि बहाव अभी भी तेज था, एक घंटा और निकल गया, अब कुछ ४व्हीलर्स नाले को पार कर पा रहे थे, हम वहां खड़े-२ बस गुरूजी को कह रहे थे गुरूजी क्या कर रहे हैं ये आप?, अब तो दर्शन दे दीजिये, तभी हमारे पास एक बुजुर्ग आकर खड़े हो गए और पूछने लगे की स्थिति क्या है? हमने कहा बस ४व्हीलेर्स निकल पा रहे हैं और वो भी एक्सपर्ट ड्राईवर ही चला पाएंगे नहीं तो बहाने का खतरा है, अब वो भी हमारे पास खड़े हो गए और बातों-२ में उन्हें हमने बताया की हमे अपने गुरूजी के दर्शन को जाना है मगर देखिये भगवान् हमारी कैसी परीक्षा ले रहे हैं, उन्होंने कहा मगर अब तो कोई टेम्पो टेक्सी कुछ भी नहीं मिलेगी अगर नाला पार कर भी लोगे तो भी, ये तो और चिंता की बात थी मगर फिर हम लोगों ने सोचा कुछ नहीं मिलेगा तो बस जो सिटी जाती हैं उन्ही से चले जायेंगे, ये बातें हम कर ही रहे थे की तभी वो बुजुर्ग हमसे बोले देखिये मेरी जीप है और मुझे सदर तक जाना है अगर आप लोग चाहो तो मै वहां तक छोड़ दूंगा वहां से ऑटो ले लेना, बाकी भगवान की जैसी इच्छा अगर आपके गुरूजी की कृपा रही तो हम सब सही सलामत नाला पार कर लेंगे, हमे तो जैसे भगवान् मिल गए थे उनके रूप में हमने थोड़ी भी देर किये बिना जीप में बैठना स्वीकार किया, अब वो बुजुर्ग बोले, चलो अपने गुरूजी को याद कर जैकारा लगाओ बच्चो, हमने जोर से जैकारा लगाया "जय गुरूजी की, जय श्री कृष्ण" और बस पलक झपकते ही नाला पार हो गए, उन्होंने हमे सादर बाज़ार तक छोड़ा उनको हम सब ने धनंयवाद दिया (हार्दिक), और ऑटो ले कर हम आश्रम पहुँच गए अब रात के ८-८:३० हो गए होंगे, हम दौड़ते हुए गुरूजी के पास पहुंचे, देखा तो गुरूजी बहुत थके हुए लग रहे थे मानो हमारे साथ वो भी आये हों और उस जीप को पार करने में उन्होंने ही हाथ लगाया हो? फिर भी हंस कर बोले और पहुँच गए आखिर, हम लोग तो बस गुरूजी के चरणों में गिर गए, हमे तो जैसे सारा संसार मिल गया था, बस गुरूजी के दर्शन ही करे जा रहे थे मन उनके पास से हटने को नहीं कर रहा था, तभी गुरूजी ने कहा अब तुम लोग घर जाओ, हम भी थक गए हैं अब कल बात करेंगे, मन तो भर नहीं रहा था मगर गुरूजी की आज्ञा थी और हम खुश थे की आखिरकार दर्शन तो मिल ही गए, और क्या चाहिए था, मुश्किल से आधा घंटे ही हम आश्रम में रुके होगे और वापस घर लौट के आने लगे तो सोचा की अब वापस कैसे जायेंगे, नाला उतरा तो नहीं होगा इतनी जल्दी खैर टेक्सी वाले को कहा अगर नाला नहीं उतरा होगा तो वापस ला कर किसी होटल में छोड़ देना, मगर ये क्या लौटे तो नाला सामान्य अवस्था में था और वहां ऐसा जरा भी नहीं लग रहा था की एक घंटे पहले वो स्थिति रही होगी यहाँ, सब सूखा हुआ था, बस अब तो ये ही कह सकते हैं की गुरूजी ने परीक्षा ली थी, हम कितने सफल हुए, हुए भी या नहीं ये तो गुरूजी ही जाने बस हम तो इस बात से आज तक खुश हैं की गुरूजी ने दर्शन दे दिए ऐसा ही लग रहा था जैसे गुरूजी हम लोगों के आने का ही इंतज़ार कर रहे थे और हमे दर्शन दे कर विश्राम के लिए चले गए, गुरूजी की महिमा तो गुरूजी ही जाने, हम तो इतना ही जानते हैं की हम तो अपने प.पु. गुरूजी को बहुत प्यार करते हैं, और गुरूजी हम को अपने चरणों में ऐसे ही बिठाये रखें , वो हमेशा हमे अपनी कृपा का पत्र बनाये रखें और कुछ नहीं चाहिए, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव.
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