Thursday, December 2, 2010

param pujya Rawatpura sarkaar aur guruji ke beech ki ekatmata ka anubhaw

राधे-राधे,
           आज मै वो बताना चाहती हूँ जो गुरूजी और महाराजजी की एकात्मकता को बताता है, हमारे परम पूज्य गुरूजी ने महासमाधि ले ली थी हम सब अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे थे जीवन में एक अन्धकार भरा खालीपन हो गया था मन दुखी रहता था, वैसे गुरूजी हमेशा कहा करते थे की मैं तो हमेशा तुम लोगों के साथ रहूँगा भले ही सूक्ष्म रूप में रहूँ, इस लिए अपने आप को कभी भी अकेला मत समझना, जब भी तुम्हे मेरी जरूरत होगी मैं तुम्हारे पास ही मिलूँगा, मगर फिर भी उनको साक्षात् न देख पाने का दुःख तो रहता ही है, वैसे भी मन में एक गिल्टी रहती है की हम गुरूजी को, जब वो सामने थे उनकी महिमा समझ नहीं पाए, अब जब समझ आया है तो वो हमारे साथ हैं मगर फिर भी हम उन्हें ढूंढ रहे हैं, खैर अपने विषय पर वापस आते हुए आपको बताऊँ,महाराजजी से गुरूजी का सम्बन्ध.
            मैंने पहले ही बताया था की कैसे महाराजजी के दर्शन मुझे मिले अब मन में शांति थी क्योंकि एक संत का आशीर्वाद भरा हाथ मुझ पर था इस लिए, एक रात मैंने एक स्वप्न देखा की मैं गुरूजी के आश्रम के gate के आगे  खड़ी  थी और गुरूजी सत्संग के लिए ऊपर के कमरे में जारहे हैं और उनके साथ पूज्य महाराजजी भी हैं और मुझे देख कर दोनों मेरी तरफ मुड़े और मुझे  हाथ उठा कर वहीँ से आशीर्वाद दिया और फिर ऊपर चले गए, थोड़ी देर में फिर दिखाई दिया की गुरूजी अपने पास महाराजजी को बैठा कर भोजन करा रहे हैं और मैं उनके सामने आकर बैठ गयी हूँ और गुरूजी ने फिर महाराजजी से कहा की "अब आप ही इसका ध्यान रखिये ",इतना ही देखा की मेरी आँखें  खुल गयी और मैंने एक बार फिर अपने अंदर एक नयी उर्जा का एहसास किया तब से ही मैंने उन्हें अपने पूज्य गुरूजी की प्रतिमूर्ति के रूप में पाया है, और महाराजजी (जिन्हें मैं गुरुदेव कहती हूँ) ने मुझे एक शिष्य एक अपने बच्चे की तरह ही स्वीकार किया और प्यार दिया है, और अब हमेशा उनके आशीर्वाद का हाथ हम पर बना रहता है. मुझे पूरा विश्वास है की पूज्य गुरूजी और महाराजजी कोई अलग-२ नहीं एक ही हैं और न सिर्फ इन दोनों संतो में एकत्मत्मकता है बल्कि उन सभी संतो और महापुरुषों में भी ये ही एकात्मकता है क्योंकि उनकी सबकी सोच सब का पथ एक ही है तो वो अलग भी कैसे हो सकते हैं सभी के ह्रदय में वो ही दया वो ही कोमलता मिलती है सभी छल कपट से दूर बस एक ही लक्ष्य रखते हैं की इस दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु भक्ति में लगाना, और उनको उस परम सत्ता जो की सत्य है उसका ज्ञान करना, चाहे उसका रास्ता कहीं से भी आता हो मगर उनको उस लक्ष्य तक पहुँचाना ही उनका कर्त्तव्य है इस लिए उनको अलग समझना हमारी बहुत बड़ी भूल होगी. आज के लिए इतना ही बहुत है. आप सभी को जय श्री राधे जय श्री कृष्ण जय  गुरूजी की. have a nice day.

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