Monday, December 6, 2010

Har samay guruji sahayata ke liye humare saath hain.............

राधे-राधे,
             परम पूज्य गुरूजी की हेल्प का हमारे परिवार के हर सदस्य को एहसास हुआ है जब-२ हम लोगों के ऊपर कोई विपत्ति आती दिखी है तब-२, कुछ कुछ बातें मुझे याद आजाने पर आप लोगों को पार्ट्स-२ में ही सही मगर शेयर जरूर करना चाहूंगी...........
एक समय की बात है मेरी बहन की शादी का function था और मुझे ही बार-२ किसी न किसी काम के बहार दौड़ लगनी पड़ रही थी मैं अपनी bike  पे ही जाती थी, परन्तु  व्यस्तता के कारण, जानते हुए भी मैं उसका ब्रैक ठीक नहीं करवा पाई थी, उस समय मैं अपने एक रिश्तेदार की बेटी को भी साथ में बैठाये  हुए थी, हम जल्दी में थे मगर ठीक ट्रैक पर चल रहे थे व्यस्त बाज़ार था मेरी bike के सामने एक रिक्शा चल रहा था जिसमे लोहे की छडें रखी हुई थीं और पीछे की तरफ काफी दूरी तक निकली हुई रखीं थीं मेरे दाहिने हाथ की तरफ रोड divider था व लेफ्ट साइड में कार चल रही थे almost हम चारों तरफ से घिरे हुए थे,  तभी रिक्शे वाले ने राईट साइड में मोड़ दिया और मैंने तेजी से ब्रैक लगाया मगर ब्रैक कम होने के कारण वो रुक ही नहीं पाया, मौत सामने साफ़ दिख रही थी, मैंने तो अब आँखें बंद कर ली थीं और गुरूजी पर सब छोड़ दिया था की तभी मुझे ये एहसास हुआ की जैसे किसी ने हमे उठा के फिर से रख दिया है, और जब मैंने आँखें खोली तो पाया की हम लेफ्ट साइड में चल रही उस कार के आगे चल रहे हैं, जो की बिलकुल असंभव था हमारे लिए, और मुझे पूरा विश्वास है की मेरे प.पूज्य गुरूजी ही थे वो जिन्होंने हमे बचाया था, मेरी वो रिश्तेदार भी आश्चर्यचकित थी, बस उस के मुंह से इतना ही निकला पाया था की हम लोग बच कैसे गए? अब आप चाहे इसे कुछ भी समझें मगर क्योंकि मैं इस बात की साक्षी हूँ  इसलिए मैं तो ये ही मानती हूँ की गुरु व परमपिता परमात्मा हर वक़्त हमारे साथ है और अगर हम उनके प्रति  पूर्ण समर्पित हो जायें तो वो हमारी हेल्प के लिए हमेशा तैयार ही मिलेंगे.

        इसी सन्दर्भ में एक और वृत्तान्त याद आ रहा है, एक बार जब मैं दिल्ली में थी और coaching के लिए  वेस्ट  पटेल  नगर जाया करती थी, और हर दिन बस स्टॉप पे उतर कर रोड क्रोस कर इंस्टिट्यूट आती थी जो की सड़क किनारे ही था, उस दिन भी मैं लालबत्ती होते ही सड़क पार करने लगी और बीच के रोड divider तक पहुँच गयी थी, और  रेड लाइट अभी भी ऑन थी इस लिए घबराने की कोई बात ही नहीं थी, अब जैसे ही मैं divider पर चड़ने लगी की एक वेन तेज़ गति से आयी और मुझे लगभग मारते हुए निकल गयी जब तक मैं या अन्य मौजूद लोग कुछ समझ पाते तब तक वो काफी आगे जा चुकी थी, सामने मेरे इंस्टिट्यूट के भी कुछ लोग खड़े थे वे सब लोग ये ही सोच रहे थे बस, की अब तो इसके बचने के कोई चांसेस नहीं हैं,और ये सब कुछ पलक झपकते ही हो गया था मगर जब समझ आया तो देखा की मैं बिलकुल ठीक थी और बस  टक्कर के कारण मेरा बैग हाथ से थोडा सा बाहर निकल आया था, मैं क्लास में जा कर बैठ गयी, सब आ-२ कर मेरा हाल-चाल पूछ रहे थे मगर मुझे कुछ नहीं हुआ था अब जैसे ही मैंने बैग खोला तो उसमे राखी हर चीज टूट गयी थी यहाँ तक की मेरी किताब और diary के पन्नो तक के छोटे-२ टुकड़े हो गए थे, मगर मुझे पता है की मै बची क्यों थी क्यों की प.पु. गुरूजी का दिया हुआ कवच जो की उन्होंने मुझे ये कह कर दिया था की इतने बड़े सिटी में अकेले रहती है इसे हमेशा पास रखना और तब से मैं उसे अपने बैग में रखती थी ( क्योंकि बड़ा था), और उसी गुरूजी के दिए कवच के प्रताप से आज मैं आप लोगों को सही सलामत ये लिख पा रही हूँ. सब उन्ही की कृपा का फल है वो ही आज तक बचा रहे हैं. इसके अलावा भी कई बार उनकी कृपा का एहसास हम लोगों को हुआ है वो भी धीरे-२ बताऊंगी आज के लिए इतना काफी है रेस्ट फॉर नेक्स्ट., जय shree  राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव.

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