Friday, December 31, 2010

new year wishesh

राधे-राधे,

आप सभी को नए साल कि बहुत-२ शुभकामनाएं, भगवान आप सभी की सारी मनोकामनाएं पूरी करें ऐसी ही प्रभु से कामना है. बहुत जल्दी फिर लौटूंगी कुछ और interesting  अनुभवों के साथ, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव.

राधे-राधे

Tuesday, December 28, 2010

haan wo sai baba hi the...............




राधे-राधे,

हमारे जीवन में भगवान कई बार साक्षात् सामने आ खड़े होते हैं मगर हम जैसे इस संसारिकता का चश्मा लगाये लोगों को उन्हें पहचान पाना मुश्किल ही होता है, और जब समझ आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, ऐसा ही एक अनुभव मुझे कुछ समय पहले हुआ था, मैं साईबाबा का गुरुवार का व्रत किया करती थी और उस गुरुवार को उद्द्यापन करना था, मैंने भोग तैयार किया और और सोचा जा कर साईं बाबा के मंदिर में भोग पहुंचा आऊँ, और बस पास ही बिल्डिंग के पीछे एक छोया सा साईं बाबा का मंदिर था वहीँ दर्शन के लिए चली गयी, कोई भी वहां दिखाई नहीं दिया, ऐसे ही छोटा सा गेट था जो lock  नहीं था मगर बंद था, मैंने इधर-उधर देखा मगर कोई भी दिखाई नहीं दिया, मैं गेट खोल के अन्दर गयी और बाबा को प्रणाम किया, तथा भोग उनके चरणों में रख दिया और उनसे कहा " साईं बाबा खा लेना, जरूर"  और मैं निकल के बाहर आगई, गेट को पहले जैसा बंद करने लगी, तभी एक यवन (मुस्लिम वेश धारी) ने मुझसे पीछे से आकर कहा "अरे खुला रहने दो मैं अन्दर जाऊंगा", मैंने उन्हें देखा तो वो मुस्कुराते हुए खड़े थे, मुझे थोडा उनका इस तरह से मुस्कुराना अटपटा लगा,  मैंने उनसे पूछा "आप बाद में बंद करके जायेंगे ना? ", उन्होंने हाँ कहा और मैं वापस आने लगी, मगर देखिये मेरे मन में एक बुरी बात आयी कि अरे ये तो कैसे गंदे कपडे पहने हैं कितनी अजीब वेशभूषा है इस आदमी कि, कहीं ये न उठा ले जाये भोग, और इतना सोचते-२ ही अचानक याद आया कि साईं सद्चरित्र में हमेशा ही ये  लिखा होता है कि बाबा यवन रूप में आये, कहीं ये बाबा ही तो नहीं हैं? अब मुझे अपनी गलती का तुरंत ही एहसास हो गया था मैंने पलट कर मंदिर के अन्दर देखा मगर वहां मुझे कोई भी फिर दिखाई नहीं दिया, मुझे बुरा लगने लगा था क्योंकि समझ आगया था कि हाँ वो बाबा ही थे,अब तो  उस चहरे पे फैली वो मुस्कराहट याद आने लगी और तब से लेकर आज तक वो पल मेरे आँखों के आगे वैसे के वैसे घुमते रहते हैं, मुझे वो चेहरा वो आवाज जो कि बहुत ही सोफ्ट थी आज भी याद है,  मै थोड़े गिल्ट थोड़ी  ख़ुशी के साथ घर आयी और माँ को बताया सब कुछ, तो माँ ने कहा " चल तेरा भोग तो उन्होंने खुद आकर ग्रहण कर लिया न और जहाँ तक उन्हें पहचानने कि बात है, तो देर से ही सही पहचान तो लिया ना तूने उन्हें , उनके साक्षात् दर्शन हो गए और क्या चाहिए." ,हाँ, माँ कि ये बात सुन कर मुझे थोडा सुकून मिला, और इस बात कि तसल्ली हुई कि बाबा ने मुझे साक्षात् दर्शन दिए.

आज के लिए इतना ही काफी है, बहुत जल्दी और भी अनुभव आप लोगों के संग बाँटना चाहूंगी तब तक के लिए आज्ञा दीजिये, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव, ॐ श्री साईं नाथाय नमः:|

Sunday, December 26, 2010

sai baba ke kuchh aur anubhav

राधे-राधे,

आप सभी को क्रिसमस कि बहुत-२ शुभकामनाएं, आज समय मिलते ही पिछले प्रसंग को आगे बड़ा रही हूँ इस देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ मगर कुछ व्यस्तता के कारण नहीं लिख पाती हूँ रेगुलरली, मगर देर से ही सही लिखूंगी जरूर और न सिर्फ अपने बल्कि दूसरों के अनुभव भी लिखना चाहूंगी क्योंकि मेरा लक्ष्य आप सब को भगवान् कि कृपा जो हर वक़्त हर इंसान या कह सकते हैं कि हर प्राणी पर होती रहती है, उससे अवगत करना है  ताकि आप सब का जो विश्वास परमात्मा पर है वो और प्रगाढ़ हो और आप सब को प्रभु कि हर क्षण अपने साथ उपस्थिति का भान  होता रहे, यही मेरा उद्देश्य है..

साईं बाबा से जुड़े कुछ और अनुभव :

जैसा मैंने बताया था कि मेरी शिर्डी कि वो यात्रा कितनी रोचक थी, हमारा विश्वास साईबाबा पर और दृढ़ हो गया था, कुछ समय बाद ही इसका एक और अनुभव मुझे हुआ जो मैं यहाँ आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूँ, मुंबई में जून का महिना तेज वर्षा हो रही थी उसी समय घर पर फ़ोन आया कि बरोदा  से मेरी एक रिश्तेदार अपनी बेटी के साथ आरही  हैं, वो लोग देर रात मुंबई पहुँचाने वाले थे मगर पता चला कि बारिश कि वजह से ट्रेन वापी (गुजेरत) में ही रोक दी गयी है, अब क्या किया जाए ? रात में ही ये निश्चित   किया गया कि मैं और मेरा कसिन उनको लेने वापी जायेंगे, प्रोग्राम फिक्स हो गया, हम दोनों सुबह चार बजे ड्राईवर के साथ वापी के लिए रवाना हुए, उस समय बारिश नहीं हो रही थी मौसम ठीक ही था, हम लोगों ने सोचा कि २-३ घंटे में वहां पहुँच कर उन्हें ले कर १ बजे तक घर लौट आयेंगे, मुंबई से बाहर निकल गए थे करीब २०-२५ किलोमीटर गए होंगे कि रास्ते में सड़क के लेफ्ट साइड में जाम लगा देखा सिर्फ मुबई आने वाला रास्ता चालू था दूसरी तरफ जाम था, लाइन से ट्रक खड़े थे गिनती करना मुश्किल थी, पता नहीं ड्राईवर से कैसे गलती हो गयी उसने गाड़ी उस क़तर के पीछ से ले कर उनके भी लेफ्ट में लगा दी अब तो हमारी देखा देखि और गाड़ियाँ भी पीछ आगईं और जाम हो गया एक और लाइन का. ड्राईवर घबरा गया और घबराहट में ही आगे बढ़ाता चला गया आगे एक जगह मिटटी गीली होने से पानी के साथ किनारे से बह गयी थी और रास्ता पूरी तरह जाम हो गया था, अब क्या करें? इंतज़ार ही कर सकते थे, और कोई चारा नहीं था, अब बारिश भी तेज हो गयी गाड़ी में बैठे -२ एक घंटा हो गया मगर स्थिति ज्यों कि त्यों बनी हुई थी, एक घंटा और निकला अब थोड़ी भूक भी लगने लगी थी मगर हमारे पास एक बोटेल पानी के अलावा और कुछ नहीं था कह सकते हैं कि ये हमारी भूल का नतीजा था, अब बारिश थोडा कम हुई तो ड्राईवर और भाई गाड़ी में मुझे lock कर के बाहर का जायजा लेने निकले कुछ ट्रक drivers से पूछ उन्होंने तो पता चला कि वो तो इस इस्थिति में पिछले ७ दिनों से पड़े हैं एक ही जगह अब तो हम लोगों के हाथ पैर ठन्डे होने लगे, कोई भी चारा नहीं था उस जगह बैठे रहने के अलावा, उस एक ही जगह बैठे-२ हमे ५-६ घंटे हो गए थे, उन दोनों को दर लगने लगा था क्योंकि मै उनलोगों के साथ थी और वहां हर तरफ सिर्फ ट्रक ही ट्रक दिख रहे थे मगर पता नहीं मुझे तब भी वो दर नहीं था बस ये ही लग रहा था कि बाबा कुछ रास्ता जरूर निकालेंगे, अब ये दोनों एक बार फिर थोडा आगे तक देखने गए कि कहीं कुछ रास्ता दिखे शायद, इधर मैंने आँखें बंद कर साईं बाबा को याद किया और उनसे प्रार्थना कि कि साईं बाबा अगर आप यहाँ इस समय मौजूद हैं तो हमे यहाँ से निकालिए कैसे भी, मै ध्यान कर ही रही थी कि किसी कि आवाज सुनायी दी कि अगर किसी को मुंबई वापस जाना है तो जल्दी से यहाँ से निकाल लो गाड़ी निकलने कि जगह है यहाँ पर और जब मैंने ये सुन आँखे खोलीं तो देखा कि सारे ट्रक जो जाने कब से फंसे हुए थे चलने शुरू हो गए थे, तभी ड्राईवर और कसिन भी दौड़ के आये और जो रास्ता साईबाबा ने हमारे लिए बना दिया था उस रास्ते से आसानी से बाहर निकल आये थे और अब मुंबई वापस आने के खुले रास्ते में थे, अब तो मैंने साईबाबा को बहुत बहुत धन्यवाद् दिया और जैसे तैसे घर पहुंचे, अब आप ही बताइए क्या ये साईबाबा कि कृपा नहीं है? मेरा तो भगवान कि उस हर वक़्त बरसने वाली कृपा पर पूर्ण विश्वास है और आप लोगों कि क्या राय है बताइए. मुझे पूरा विश्वास है कि भगवान् हमेशा हम सब के साथ रहते हैं बस हम ही उन्हें पहचान नहीं पाते, क्योंकि वो तो किसी भी रूप में हमारे साथ हो सकते हैं क्योंकि वो तो सर्वव्यापी हैं, बस उनकी कृपा का एहसास इसी तरह होता रहे उनकी भक्ति मन में हमेशा बनी रहे वो कभी भी हमारे ध्यान से दूर न जायें ये ही उनसे प्रार्थना है, आप सब को भी प्रभु का साथ हमेशा अनुभव होता रहे इसी कामना के साथ जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव, ॐ श्री  साईं नाथाय नमः.

Sunday, December 19, 2010

Param pujya shree shirdi sai baba ki anubhutiyaan.........

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राधे-राधे,

आप सभी से काफी दिन दूर रही उसके लिए माफ़ी चाहती हूँ, मगर पता है आप लोग मुझे माफ़ करेंगे, इसलिए धन्यवाद के साथ कुछ नए अनुभवों को बाँट रही आप सभी के साथ....

           जैसा की मै पहले ही आप लोगों से कह चुकी हूँ की जब व्यक्ति को प्रभु की कृपा से उसके अद्ध्यात्मिक गुरु का सानिध्य प्राप्त हो जाता है तब उनकी कृपा से उन अभूतपूर्व पूज्य आत्माओं का दर्शन व अनुभूतियाँ भी शिष्य को होनी शुरू हो जाती हैं, या ये कह सकते हैं की जो कृपा वे आजतक करते आरहे थे उनकी समझ और पहचान धीरे-२ होने लग जाती है, ऐसा ही कुछ शायद मेरे साथ भी थोडा-२ होने लगा है मुझे भी शायद अब भगवान व संत महापुरुषों की कृपा का कुछ-२ एहसास होने लगा है, कुछ अनुभूतियाँ मुझे हुई हैं जिन्हें बताना चाहूंगी, इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कुछ अनुभव  मै प.पु. श्री शिर्डी साईं बाबा के बारे में प्रेषित कर रही हूँ  ,
            बात उस समय  की है जब मै दिल्ली में छात्रावास में रहती थी और दीवाली पर घर आयी थी तब घर पे एक कैलेंडर देखा जिसमे श्री शिर्डी साईबाबा अपने चिरपरिचित मुद्रा में आशीर्वाद दे रहे थे, मैंने माँ से पूछा ये कब आये, तो माँ ने बताया "देखो इनका चमत्कार की एक दिन हम सोच रहे थे की हमारे घर में साईं बाबा की एक भी फोटो नहीं है एक लेकर आयेंगे, और उसी दिन शाम जब हम अपने एक परिचित के घर गए तो उन्होंने हमे ये कैलेंडर दिया ये कहते हुए कि वे शिर्डी गए थे तो वहां से लाये हैं हमारे लिए भी" , और देखिये बाबा ने इस तरह माँ की इच्छा तुरंत ही पूरी कर दी और घर में साक्षात् पधार गए, ये बात मैंने सुनी और जब  मै हॉस्टल लौटी तो अपनी रूम मेट को ये बात बताई वो भी तमिल ब्रह्मिन थी व भगवान् में उसका भी पूर्ण विश्वास था, हमने अपने कमरे में एक छोटा सा पूजा स्थान बना रखा था, जब हम ये बात कर रहे थे तभी हमे भी लगा की हमारे पास भी साईं बाबा की एक भी फोटो नहीं है और हमने सोचा की अब जिस दिन छुट्टी होगी हम उस दिन बाज़ार से ले कर आयेंगे, अगले दिन सुबह-२ मैं स्नान कर पूजा करने बैठी ही थी की अनौंसमेंट  हुआ मेरे नाम का की कोई मिलने आया है, मैं नीचे गयी तो मेरी एक फ्रेंड जो पूना में रहती थी उसने मेरे लिए कुछ तोहफे भेजे थे, मैं उन्हें ले कर ऊपर आयी और हम खोल कर देखने लगे और जैसे ही मैंने पहला पक्केट खोला साईं बाबा उसी अपनी चिरपरिचित मुद्रा में मुस्कुराते हुए आगये, उन्हें देखते ही हम दोनों अपनी हंसी रोक नहीं पाए और उस ख़ुशी में कब हमारे आंसू बहाने लगे पता ही नहीं चला और देखिये तो साईं बाबा भी हमारे साथ-२ वैसे  ही मुस्कुरा रहे थे, हमारी तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी थी हम दोनों बहुत खुश थे और हमने फिर मिलकर उन्हें अपने पूजा के स्थान पर पूर्ण श्रद्धा के साथ विराजमान किया, और तब से उनकी सर्वव्यापकता का हम लोगों को एहसास होने लग गया था, क्योंकि हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ हर चीज को मानने के लिए साक्ष्य की जरूरत पड़ती है शायद इसी वजह से भगवान् को भी अपनी उपस्थिति का एहसास हम कलयुगी लोगों को कराने  के लिए समय-२ पर प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ता है, खैर जो भी है भगवान् को थोडा दिक्कत तो जरूर होती है मगर कम पर कुछ तो असर होता ही है ऐसा मेरा सोचना है.

      इसी कड़ी में आगे --८-९ वर्ष पहले की बात होगी मेरा बहुत शिर्डी जाने का मन था मैंने माँ से कहा और कुछ ऐसा चमत्कार हुआ की हमारा अगले ही दिन सुबह जाने का प्रोग्राम बन गया हमारी पहली शिर्डी यात्रा का, रात को ही ड्राईवर को सुबह पौने चार बजे बुला लिया और मै, माँ, पास में ही रहने वाली एक आंटी व उनकी बेटी हम पांच लोगों ने मुंबई से शिर्डी के लिए प्रस्थान किया, मौसम भी बारिश का होने पर भी साफ़ मिला जब नासिक पहुंचे तब से रिमझिम फुहारे पदनी शुरू हो गयी कहते हैं की वहां ऐसा ही मौसम लगभग पूरे वर्ष रहता है, बहुत ही अच्छा मौसम था, हम करीब एक बजे तक शिर्डी पहुँच गए तभी याद आया की आज तो मंगलवार है, और आज के दिन तो इतनी भीड़ होती है की बाबा के दर्शनों को सुबह से शाम तक खड़े रहना पड़ जाता है तब कहीं दर्शन मिल पाते  हैं और हमे तो उसी दिन वापस लौटना था, खैर अब तो बाबा पे छोड़ दिया था, और उनके दर्शनों के लिए मंदिर में प्रवेश किया, अब देखिये बाबा की लीला, जिस समय हम मंदिर में गए उस समय मुश्किल से १०-१२ लोग ही बस वहां दर्शनों के लिए लाइन में लगे थे और बाबा अपने भगतों को मुस्कुराते हुए स्वागत कर रहे थे बाहर भी (टीवी पटल पर भी), मैं यहाँ इस बात पर आप लोगों का ध्यान  आकर्षित करवाना भी जरूरी समझती हूँ की जब आप लाइन में लगे होते हैं तब बाबा का लाइव वीडियो वहां टीवी स्क्रीन्स पर दर्शनों हेतु मौजूद रहता है और बाबा को देख कर आपको एक परम आनंद प्राप्त होता है क्योंकि वो इस तरह उनके चरणों के दर्शन करने पहुंचे भक्त को देख रहे होते हैं मानो पूछ रहे हों की और कैसे हो कुछ चाहते हो तो बताओ. एक माहौल ही बाबा के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो जाने का बन जाता है (किसी के लिए भी) वहां, हमे भी जाते ही बाबा ने चमत्कार दिखा दिया था, अब हम बाबा के सामने खड़े थे और बिना किसी असुविधा के आराम से बाबा के भरपूर दर्शन कर पा रहे थे वो भी मंगलवार के रोज हमने वहां बाबा को पूरे १५ मिनट निहारा, और बस फिर तो देखा की वाहाँ भारी   भीड़ हो गयी,हमने एक बार फिर बाबा को प्रणाम किया और धनंयवाद दिया की उन्होंने हमे उनके  दर्शन करने की इच्छा को पूर्ण कराया. हम मंदिर से बाहर आये शनि देवजी के व गणपतिजी के भी दर्शन किये व मंदिर से बाहर आकर कुछ खरीद दारी  की व लंच आदि के बाद मुंबई के लिए साईं बाबा से आज्ञा ले शिर्डी से प्रस्थान किया, अब नासिक पहुँचने से पहले पड़ने वाली पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचाते ही लम्बा जाम लग गया पता चला एक बड़ा ट्रक आड़ा खड़ा हो गया है और अब शायद पूरी रात यहीं रुकना पड़ जाएगा, इस समय शाम के सात बज चुके थे अब तक पीछे भी कई और गाड़ियों के कारण जाम लग गया था हम पैक हो चुके थे, एक तरफ ऊँचे पहाड़ और दूसरी तरफ गहरी खाई, मगर मन में तो बाबा बसे थे बाबा के उपर पूर्ण विश्वास था इस लिए डर  नहीं लग रहा था जबकि हम चार महिलाएं और एक ड्राईवर ही बस थे मगर उन सब से ऊपर बाबा का साथ था और गुरूजी तो रहते ही हैं न साथ हमेशा तो, हम बस बाबा को कह रहे थे की निकाल दो यहाँ से ताकि हम आज ही घर पहुँच सकें और तभी थोड़ी देर में वो ट्रक सीधा हो गया जो असंभव था, मगर सब बाबा की कृपा थी वो चाहें तो क्या नहीं कर सकते, बस थोड़ी देर में ही जाम ख़तम हो गया और हम नासिक पहुँच गए और फिर लगभग १० बजे रात तक हम बाबा की कृपा से घर पहुँच चुके थे, एक अविस्मरनीय उत्साह के साथ. ये सब बाबा के उस आशीर्वाद का फल था, और ये अनुभूति भी हमे पु.गुरूजी की कृपा से ही हुई थी, जो हम साईं बाबा की उपस्थिति का एहसास कर पाए, क्योंकि कहते हैं न की गुरु की अगर कृपा होती है तो भगवान् सानिध्य भी प्राप्त हो जाता है.

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आज के लिए इतना ही काफी है, कल इसी प्रसंग ka  आगे भी विस्तार  करूंगी, आज आज्ञा दीजिये, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव, ॐ श्री साईं नाथाय नमः |



Friday, December 10, 2010

Guru purnima ke samay ka anubhav.......

राधे-राधे,
आज मुझे कुछ और याद आया,प.पु गुरूजी के बारे में बताने के लिए, ये बात एक समय गुरु पूर्णिमा महोत्सव की है, मै गुरु पूर्णिमा के लिए पहले ही जबलपुर पहुँच गयी थी, उत्सव से एक दिन पहले हम सब सत्संग के लिए आश्रम में बैठे थे की गुरूजी ने मुझे अचानक अन्दर बुलाया और मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और कहा तेरी  तबियत ठीक है न? तो मैंने कहा जी गुरूजी बस थोडा कोल्ड है और कुछ नहीं, मगर उन्होंने तभी दीदी को बुलाया और कहा की तेरी बहन की तबियत ठीक नहीं है तुम लोग अभी ही घर लौट जाओ, तो दीदी ने कहा की बस गुरूजी सत्संग के बाद निकल जायेंगे, मगर गुरूजी ने तुरंत जाने को कहा, और कहा सम्हाल के ले जाना ये बीमार है, हम लोग वहां से निकल गए तभी हम घर फ़ोन करने के लिए रुके मगर मुझे इतनी देर में तेज ठण्ड लगने लगी और हमे बिना बात किये घर वापस आना पड़ा, 2nd floor तक चदना मुश्किल होने लगा, ऊपर जाते ही मुझे इतनी तेज ठण्ड लगने लगी की दीदी और उनकी फ्रेंड (जो उनके साथ ही रहती थी) ने सारे ओढ़ने  के कपडे मेरे ऊपर  डाल दिए मगर मेरी ठण्ड कम ही नहीं हो रही थी, रात भर दोनों मेरे हाथ पैर मलती रहीं सिकाई कर्रती रहीं मगर कुछ फायदा नहीं हो रहा था, पूरी रात कोई भी नहीं सोया था, सुबह गुरुपूर्णिमा महोत्सव में पहुँचाने की चिंता होने लगी, गुरूजी से हम लोग प्रार्थना कर रहे थे, अब सुबह हुई सब को नींद आगई मुझे भी अब थोड़ी गर्मी आनी शुरू हो गयी थी तो हम सब सो गए, सुबह ७-७:३० पर माँ और एक आंटी आगये, उनकी ट्रेन थोडा देर  से पहुंची थी इस लिए हम भी उनके आने पर ही उठे अब उनके आते ही देखिये भगवान् की लीला, ऐसी तेज बारिश शुरू हो गयी की लगे की अब कैसे आश्रम पहुंचेंगे? खैर फिर ये हुआ की  दीदी ने कहा, मै तो पहले निकल जाती हूँ और कोई टेक्सी वगैरह ले कर आती हूँ तब तक आप लोग सब तैयार हो जाइये हम सब तैयार हो गए मगर तभी दीदी ने आकर बताया की कालोनी से मेन रोड तक जाने के बीच में एक बरसाती नाला पड़ता है जो भर गया है और उसका बहाव इतना तेज था की एक आदमी की bike व वो खुद भी बह गया है, इसका मतलब साफ़ था की अभी निकल पाना मुश्किल था, दीदी और उनकी फ्रेंड दोनों वहीँ खड़े हो कर नाले के उतरने का इंतज़ार कर रहे थे मगर वो तो उफान में ही आता जा रहा था, बारिश भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी, पता नहीं गुरूजी क्या परीक्षा ले रहे थे हमारी, तभी दीदी से नहीं रहा गया और उन्होंने अपनी फ्रेंड को घर जाने को कह खुद ने गुरूजी को याद कर नाला पार कर लिया और गीले कपड़ों से ही आश्रम के लिए रवाना हो गयीं, फ्रेंड ने हमे आकर बताया सब, हम क्या कर सकते थे, हम young थे हम तो एक बार को निकल भी जाते मगर उन दोनों को कैसे पार कराते , अब तो बस बारिश रुकने व नाले के उतरने के इंतज़ार के अलावा कुछ नहीं हो सकता था, हम लोग घर में ही बैठ कर गुरूजी से प्रार्थना करने लगे, लगभग दोपहर के दो बज गए थे, बारिश अब रुक गयी थी मगर नाला अभी भी जस का तस बह रहा था, बार -२ हम दोनों जाकर condition देख कर आते मगर, कोई फायदा न होता अब शाम के चार बज चुके थे हम सब उदास थे, मगर फिर भी मन में कहीं न कहीं एक आस थी की पहुँच जायेंगे ही, अब एक घंटा और निकला, अब माँ वगैरह ने भी कहा की चलो भगवान् का नाम ले कर चलते हैं और जैसे ही थोडा नाला उतरेगा हम पार कर निकल जायेंगे, अब चाहे रात ही क्यों न हो जाए दर्शन तो करने ही हैं गुरूजी के, वैसे आश्रम शहर के एक छोर पे है और हमारा घर दूसरे छोर पे वो भी शहर से काफी दूर, खैर अब निश्चय कर हम चारों निकल पड़े, नाला थोडा नीचे आगया था मगर इतना नहीं की कोई पैदल पार कर सके क्योंकि बहाव अभी भी तेज था, एक घंटा और निकल गया, अब कुछ ४व्हीलर्स नाले को पार कर पा रहे थे, हम वहां खड़े-२ बस गुरूजी को कह रहे थे गुरूजी क्या कर रहे हैं ये आप?, अब तो दर्शन दे दीजिये, तभी हमारे पास एक बुजुर्ग आकर खड़े हो गए और पूछने लगे की स्थिति क्या है? हमने कहा बस ४व्हीलेर्स निकल पा रहे हैं और वो भी एक्सपर्ट ड्राईवर ही चला पाएंगे नहीं तो बहाने का खतरा है, अब वो भी हमारे पास खड़े हो गए और बातों-२ में उन्हें हमने बताया की हमे अपने गुरूजी के दर्शन को जाना है मगर देखिये भगवान् हमारी कैसी परीक्षा ले रहे हैं, उन्होंने कहा मगर अब तो कोई टेम्पो टेक्सी कुछ भी नहीं मिलेगी अगर नाला पार कर भी लोगे तो भी, ये तो और चिंता की बात थी मगर फिर हम लोगों ने सोचा कुछ नहीं मिलेगा तो बस जो सिटी जाती हैं उन्ही से चले जायेंगे, ये बातें हम कर ही रहे थे की तभी वो बुजुर्ग हमसे बोले देखिये मेरी जीप है और मुझे सदर तक जाना है अगर आप लोग चाहो तो मै वहां तक छोड़ दूंगा वहां से ऑटो ले लेना, बाकी भगवान की जैसी इच्छा अगर आपके गुरूजी की कृपा रही तो हम सब सही सलामत नाला पार कर लेंगे, हमे तो जैसे भगवान् मिल गए थे उनके रूप में हमने थोड़ी भी देर किये बिना जीप में बैठना स्वीकार किया, अब वो बुजुर्ग बोले, चलो अपने गुरूजी को याद कर जैकारा लगाओ बच्चो, हमने जोर से जैकारा लगाया "जय गुरूजी की, जय श्री कृष्ण" और बस पलक झपकते ही नाला पार हो गए, उन्होंने हमे सादर बाज़ार तक छोड़ा उनको हम सब ने धनंयवाद दिया (हार्दिक), और ऑटो ले कर हम आश्रम पहुँच गए अब रात के ८-८:३० हो गए होंगे, हम दौड़ते हुए गुरूजी के पास पहुंचे, देखा तो गुरूजी बहुत थके हुए लग रहे थे मानो हमारे साथ वो भी आये हों और उस जीप को पार करने में उन्होंने ही हाथ लगाया हो? फिर भी हंस कर बोले और पहुँच गए आखिर, हम लोग तो बस गुरूजी के चरणों में गिर गए, हमे तो जैसे सारा संसार मिल गया था, बस गुरूजी के दर्शन ही करे जा रहे थे मन उनके पास से हटने को नहीं कर रहा था, तभी गुरूजी ने कहा अब तुम लोग घर जाओ, हम भी थक गए हैं अब कल बात करेंगे, मन तो भर नहीं रहा था मगर गुरूजी की आज्ञा थी और हम खुश थे की आखिरकार दर्शन तो मिल ही गए, और क्या चाहिए था, मुश्किल  से आधा घंटे ही हम आश्रम में रुके होगे और वापस घर लौट के आने लगे तो सोचा की अब वापस कैसे जायेंगे, नाला उतरा तो नहीं होगा इतनी जल्दी खैर टेक्सी वाले को कहा अगर नाला नहीं उतरा होगा तो वापस ला कर किसी होटल में छोड़ देना, मगर ये क्या लौटे तो नाला सामान्य अवस्था में था और वहां ऐसा जरा भी नहीं लग रहा था की एक घंटे पहले वो स्थिति रही होगी यहाँ, सब सूखा हुआ था, बस अब तो ये ही कह सकते हैं की गुरूजी ने परीक्षा ली थी, हम कितने सफल हुए, हुए भी या नहीं ये तो गुरूजी ही जाने बस हम तो इस बात से आज तक खुश हैं की गुरूजी ने दर्शन दे दिए ऐसा ही लग रहा था जैसे गुरूजी हम लोगों के आने का ही इंतज़ार कर रहे थे और हमे दर्शन दे कर विश्राम के लिए चले गए, गुरूजी की महिमा  तो गुरूजी ही जाने, हम तो इतना ही जानते हैं की हम तो अपने प.पु. गुरूजी को बहुत प्यार करते हैं, और गुरूजी हम को अपने चरणों में ऐसे ही बिठाये रखें , वो हमेशा हमे अपनी कृपा का पत्र बनाये रखें और कुछ नहीं चाहिए, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव.

Tuesday, December 7, 2010

PUJYA GURUJI KA HUMARE GHAR AAGMAN..........

राधे-राधे,
जैसा की मैंने पहले आप लोगों को बताया था की कैसे हम लोगों को प.पु गुरूजी ने अद्ध्यात्म के मार्ग में लगाया, उसी समय गुरूजी ने माँ को कहा था की हम तुम्हारे घर आयेंगे, माँ उस समय थोडा सोच में pad, बस माँ के मन में क्षण मात्र के लिए कुछ विचार आया, की गुरूजी समझ गए माँ की मनःस्थिति और तुरंत बोले अब तू एक यज्ञ करवाना तब हम तेरे यहाँ आयेंगे, माँ ने सोचा हम लोग कहाँ यज्ञ करवा सकते  है और वो भी गुरूजी से?, मगर अब गुरूजी का कथन था तो सत्य तो होना ही था तो फिर तो सब किस  तरह होता गया वो तो वो ही जाने, ६ महीनो के अन्दर ही हम लोगों को यज्ञ करवाने का मौका आगया और गुरूजी की कृपा से लोग अपने आप जुड़ते गए गुरूजी के प्रताप से उन्ही के संरक्षण में ५ दिनों तक यज्ञ चला, पूरा वातावरण खुशनुमा हो गया, कहाँ से क्या इंतज़ाम होता गया पता ही नहीं चला, जिस दिन यज्ञ की पूर्णाहुति का दिन था, उसदिन  गुरूजी ने सभी कार्यकर्ताओं को अपने तरफ से त्रोफियाँ प्रदान कीं  व सभी को मुद्रा भी पुरूस्कार स्वरुप प्रदान की जो अभी तक हम सभी ने सुरक्षित रखी हुयी है, पूर्णाहुति वाले दिन सुबह गुरूजी ने कन्या भोज कराया ऐसा लग रहा था जैसे छोटी-२ देवियाँ साक्षात् आसमान से उतर आयीं हैं और सभी भक्त  जनो को आशीर्वाद  प्रदान  कर रही हैं, जब  सुबह भोग  तैयार  हुआ  तो गुरूजी ने गौसेवा करवाने को कहा हम सब सोच ही रहे  थे की गौमाता कहाँ से आएँगी , तभी  एक आश्चर्यजनक बात हुयी, एक काले रंग की सुन्दर सी गौमाता अपने  बछड़े के साथ खुद-ब-खुद आगईं और गुरूजी के पास आकर खड़ी हो गयीं जिन्हें देख कर गुरूजी एकदम खुश हो उठ कर खड़े हो गए और बोले "अरे! ये तो श्यामा हैं, कैसी हो? अच्छा इसे भी लाई ho?" और फिर उन्हें प्यार से हाथ फेरने लगे व खुद अपने हाथों से भोजन कराया ( मैं आप लोगों को इस समय के फोटोग्राफ्स भी उपलब्ध करूंगी मगर थोड़े दिनों बाद), कन्या भोज के बाद अन्य सभी ने भी भोग पाया, गुरूजी विश्राम के लिए चले गए थे २ बजे से फिर यज्ञ की पूजा शुरू होने वाली थी हम सब यज्ञ मंडप के पास ही अपने-अपने कामो में लगे हुए थे, घर पर माँ व कुछ रिश्तेदार थे, तभी अचानक गुरूजी की गाडी हमारे पास से निकली और गुरूजी ने भाई से कहा की चलो रास्ता दिखाओ हम तुम्हारे घर आरहे हैं तभी मैं और भाई जल्दी से गाड़ी में बैठ गए और थोडा लम्बे रास्ते से उनको ले कर गए जब तक दीदी पास वाले रास्ते से घर पहुँच गयीं और जाकर सबको खबर कर दी और जल्दी-२ उनके स्वागत का जो भी बन पड़ा इन्तेजाम किया गया, माँ को तो सब कुछ अविश्वसनीय लग रहा था, गुरूजी आये पूरे घर में घूमे और आकर हॉल में आसन पर बैठ गए तब तक आस-पास के लोग भी उन्हें देख कर आगये थे और, हॉल लोगों से पूरा खचाखच भर गया था, गुरूजी ने सब से बातें की और कुछ लोगों की समस्याओं का निवारण भी किया, शायद १ घंटा गुरूजी घर में रहे फिर सबसे कहने लगे चलो हवन का समय हो रहा है और उठ कर गाड़ी में बैठ के चले गए, माँ तो कुछ भी बोल ही नहीं पा रही थीं न ही उन्हें कुछ समझ आरहा था बस यही कहती जा रही थीं की हम गुरूजी की सेवा ठीक से नहीं कर पा रहे हैं, मगर जाते समय गुरूजी बोले तेरा सब ठीक है, और चले गए अपना वचन पूरा कर के जो उन्होंने माँ को कुछ समय पहले दिया था.
              हम सब भी यज्ञ स्थल पहुँच गए थे हवन शुरू हो गया, शाम को यज्ञ की पूर्णाहुति थी अभी तक तो गुरूजी एक बार भी यज्ञ मंडप के अन्दर नहीं गए थे, बस दूर ही बैठे देखते रहते थे, शाम को पूर्णाहुति के समय गुरूजी यज्ञ मंडप के अन्दर पहुंचे और जैसे ही गुरूजी ने आहुति दी की अग्नि देवता जैसे अपने उत्साह को रोक न पाए हों और यज्ञवेदी से लपटें मंडप की छत तक पहुँचाने लगीं बस गुरूजी तुरंत ही वापस लौट गए गुरूजी का पूरा मुखमंडल लाल हो गया था, और गुरूजी गाड़ी में बैठ कर विश्राम स्थल रवाना हो गए थे, सब ने देखा गुरूजी के जाते ही लपटें वापस अपने स्वाभाविक स्वरुप में आगईं थी लोग जैजैकार कर रहे थे इस प्रकार यहाँ गुरूजी का यज्ञ निर्विघ्न गुरूजी की व बाँके बिहारी की कृपा से पूर्ण हुआ व सभी आरती के बाद गुरूजी के दर्शनों को प्रस्थान करने लगे. इस तरह गुरूजी ने माँ को दिए अपने दोनों वचनों को पूर्ण कर दिया. प.पु.गुरुगी के चरणों में शत-शत प्रणाम, गुरूजी हम आपको बहुत याद करते हैं| जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव. भगवान की कृपा सब पर बनी रहे इसी कामना के साथ आज यहीं विश्राम लेती हूँ जय गुरुदेव.

Monday, December 6, 2010

Har samay guruji sahayata ke liye humare saath hain.............

राधे-राधे,
             परम पूज्य गुरूजी की हेल्प का हमारे परिवार के हर सदस्य को एहसास हुआ है जब-२ हम लोगों के ऊपर कोई विपत्ति आती दिखी है तब-२, कुछ कुछ बातें मुझे याद आजाने पर आप लोगों को पार्ट्स-२ में ही सही मगर शेयर जरूर करना चाहूंगी...........
एक समय की बात है मेरी बहन की शादी का function था और मुझे ही बार-२ किसी न किसी काम के बहार दौड़ लगनी पड़ रही थी मैं अपनी bike  पे ही जाती थी, परन्तु  व्यस्तता के कारण, जानते हुए भी मैं उसका ब्रैक ठीक नहीं करवा पाई थी, उस समय मैं अपने एक रिश्तेदार की बेटी को भी साथ में बैठाये  हुए थी, हम जल्दी में थे मगर ठीक ट्रैक पर चल रहे थे व्यस्त बाज़ार था मेरी bike के सामने एक रिक्शा चल रहा था जिसमे लोहे की छडें रखी हुई थीं और पीछे की तरफ काफी दूरी तक निकली हुई रखीं थीं मेरे दाहिने हाथ की तरफ रोड divider था व लेफ्ट साइड में कार चल रही थे almost हम चारों तरफ से घिरे हुए थे,  तभी रिक्शे वाले ने राईट साइड में मोड़ दिया और मैंने तेजी से ब्रैक लगाया मगर ब्रैक कम होने के कारण वो रुक ही नहीं पाया, मौत सामने साफ़ दिख रही थी, मैंने तो अब आँखें बंद कर ली थीं और गुरूजी पर सब छोड़ दिया था की तभी मुझे ये एहसास हुआ की जैसे किसी ने हमे उठा के फिर से रख दिया है, और जब मैंने आँखें खोली तो पाया की हम लेफ्ट साइड में चल रही उस कार के आगे चल रहे हैं, जो की बिलकुल असंभव था हमारे लिए, और मुझे पूरा विश्वास है की मेरे प.पूज्य गुरूजी ही थे वो जिन्होंने हमे बचाया था, मेरी वो रिश्तेदार भी आश्चर्यचकित थी, बस उस के मुंह से इतना ही निकला पाया था की हम लोग बच कैसे गए? अब आप चाहे इसे कुछ भी समझें मगर क्योंकि मैं इस बात की साक्षी हूँ  इसलिए मैं तो ये ही मानती हूँ की गुरु व परमपिता परमात्मा हर वक़्त हमारे साथ है और अगर हम उनके प्रति  पूर्ण समर्पित हो जायें तो वो हमारी हेल्प के लिए हमेशा तैयार ही मिलेंगे.

        इसी सन्दर्भ में एक और वृत्तान्त याद आ रहा है, एक बार जब मैं दिल्ली में थी और coaching के लिए  वेस्ट  पटेल  नगर जाया करती थी, और हर दिन बस स्टॉप पे उतर कर रोड क्रोस कर इंस्टिट्यूट आती थी जो की सड़क किनारे ही था, उस दिन भी मैं लालबत्ती होते ही सड़क पार करने लगी और बीच के रोड divider तक पहुँच गयी थी, और  रेड लाइट अभी भी ऑन थी इस लिए घबराने की कोई बात ही नहीं थी, अब जैसे ही मैं divider पर चड़ने लगी की एक वेन तेज़ गति से आयी और मुझे लगभग मारते हुए निकल गयी जब तक मैं या अन्य मौजूद लोग कुछ समझ पाते तब तक वो काफी आगे जा चुकी थी, सामने मेरे इंस्टिट्यूट के भी कुछ लोग खड़े थे वे सब लोग ये ही सोच रहे थे बस, की अब तो इसके बचने के कोई चांसेस नहीं हैं,और ये सब कुछ पलक झपकते ही हो गया था मगर जब समझ आया तो देखा की मैं बिलकुल ठीक थी और बस  टक्कर के कारण मेरा बैग हाथ से थोडा सा बाहर निकल आया था, मैं क्लास में जा कर बैठ गयी, सब आ-२ कर मेरा हाल-चाल पूछ रहे थे मगर मुझे कुछ नहीं हुआ था अब जैसे ही मैंने बैग खोला तो उसमे राखी हर चीज टूट गयी थी यहाँ तक की मेरी किताब और diary के पन्नो तक के छोटे-२ टुकड़े हो गए थे, मगर मुझे पता है की मै बची क्यों थी क्यों की प.पु. गुरूजी का दिया हुआ कवच जो की उन्होंने मुझे ये कह कर दिया था की इतने बड़े सिटी में अकेले रहती है इसे हमेशा पास रखना और तब से मैं उसे अपने बैग में रखती थी ( क्योंकि बड़ा था), और उसी गुरूजी के दिए कवच के प्रताप से आज मैं आप लोगों को सही सलामत ये लिख पा रही हूँ. सब उन्ही की कृपा का फल है वो ही आज तक बचा रहे हैं. इसके अलावा भी कई बार उनकी कृपा का एहसास हम लोगों को हुआ है वो भी धीरे-२ बताऊंगी आज के लिए इतना काफी है रेस्ट फॉर नेक्स्ट., जय shree  राधे, जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव.

Friday, December 3, 2010

pictures of param pujya devarha babaji and gurudev............

 
 Param pujya Deverhababaji

Shri Devraha Baba ji

Shri Devaraha Baba Ji
Shri Devraha Baba ji

Pujya gurudev at the time of gurupurnima mahotsav
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj Ji

"Satchidananda alone is the Guru. If a man in the form of a guru awakens spiritual consciousness in you, then know for certain that it is God the Absolute who has assumed that human form for your sake. The guru is like a companion who leads you by the hand."
 
Pujya gurudev  ko mera shat-shat pranaam
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj Ji
Faith is the fundamental mantra of universe. It’s through faith that you will be able to go beyond the ignorance of mind to receive divine grace of sages and build a positive character.
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj Shri
One should always have unwavering trust and faith in his Sadguru because the relation between a disciple and his guru is not of the human body rather its soul.
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj Ji
Every person should take some time out daily for meditation. Meditation cleanses our mind by removing the accumulated garbage of thoughts and streams through it a constant flow of love and compassion.
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj Ji
Prayer has lot of power. A prayer is not a web of words but a heartfelt expression which we offer to our beloved. Prayer reduces the ‘I’ in you.
Shri Rawatpura Sarkar Maharaj Ji
Grace of a saint is not an object that is visible to the naked eye. A person should have a strong resolution and faith to receive it. Just like rainwater fills potholes yet doesn’t stay on shallow grounds similarly a guru’s grace needs an empty vessel to receive it.

Rawatpura dhaam


Shri Rawatpura Sarkar Dham         
For a saint no one is big or small, to him all are equal. His blessings are meant for all, the difference is in your thirst to drink the elixir of grace.

Shri Rawatpura Sarkar Dham
"The first sign of your becoming religious is that you are becoming cheerful"

Shri Rawatpura Sarkar Dham
A person should strive to be in company of people with a mature and refined thought process to gain knowledge and positive character.
Bhakt are doing meditation
A person should talk less and listen more. Too much talk results in dissipation of energy and you also lose control of the mind.





 jai shree radhe jai shree krishna jai guruji ki

Thursday, December 2, 2010

patra mila humara...............?

राधे-राधे,
             परम पूज्य गुरुदेव (पु. रावतपुरा सरकारजी ) से सम्बंधित एक और अपना अनुभव शेयर करना चाहूंगी.
             बात उस समय की है जब मेरी दीदी की शादी होने वाली थी तो उनका निमंत्रण पत्र हमने रावतपुरा भी गुरुदेव को भेजा था. उसके उत्तर में गुरुदेव का हस्ताक्षरित बधाई पत्र हमे तुरंत ही आगया, हमे सब बहुत ही आनंदित थे इसे पाकर और माँ ने उसे आज तक सम्हाल कर रखा हुआ है, इसके कुछ दिनों बाद ही पु. गुरुदेव का आगमन हमारे शहर में हुआ और मै और माँ उनके दर्शनों के लिए पहुंचे सुबह की आरती के बाद गुरुदेव कुछ समय भक्तों से मिलने में बिताते हैं सो हम भी मिलने गए पहले मैं गयी प्रणाम किया तो उन्होंने मेरी पढ़ाई के बारे में पूछा और आशीर्वाद दिया, मेरे बाद माँ गयीं माँ ने प्रणाम ही किया था की एक उन्होंने पूछ लिया "और बेटी की शादी ठीक से हो गयी न? हमारा पत्र मिला?", माँ के तो आँखों से आंसू बहाने लगे उनकी सर्वव्यापकता को जान कर नहीं तो उन्हें इतने लोगों में कैसे ये पता चल गया की माँ ही वो हैं जिनकी बेटी की शादी का निमंत्रण पत्र आया था, जबकि हमारा ऐसा कभी कोई introduction तो उनसे हुआ भी नहीं था तब तक बस हम सारी जनता के साथ उनके दर्शनों को जाते थे और आरती व होने वाले अन्य प्रोग्रामो में हो कर वापस आजाते थे, ऐसी छोटी-छोटी कई बातें हमारे साथ होती रहती हैं जो की प.पु. गुरूजी के गुरुदेव के मेरे बनके बिहारी के सर्व्यापकता का हम लोगों को अनुभव कराती रहती हैं कई बार तो अनुभव हो जाता है परन्तु कभी नहीं भी कर पते मगर इसका ये मतलब नहीं है की उनकी कृपा होना बंद हो गया है वो तो निरंतर कृपा कर रहे हैं बस हम पर ही सांसारिकता की बत्ती बंधी हुई है. और भी आगे लिखूंगी अभी ये ही याद आ गया तो सोचा आप लोगो से शेयर कर लूँ.
                   

param pujya Rawatpura sarkaar aur guruji ke beech ki ekatmata ka anubhaw

राधे-राधे,
           आज मै वो बताना चाहती हूँ जो गुरूजी और महाराजजी की एकात्मकता को बताता है, हमारे परम पूज्य गुरूजी ने महासमाधि ले ली थी हम सब अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे थे जीवन में एक अन्धकार भरा खालीपन हो गया था मन दुखी रहता था, वैसे गुरूजी हमेशा कहा करते थे की मैं तो हमेशा तुम लोगों के साथ रहूँगा भले ही सूक्ष्म रूप में रहूँ, इस लिए अपने आप को कभी भी अकेला मत समझना, जब भी तुम्हे मेरी जरूरत होगी मैं तुम्हारे पास ही मिलूँगा, मगर फिर भी उनको साक्षात् न देख पाने का दुःख तो रहता ही है, वैसे भी मन में एक गिल्टी रहती है की हम गुरूजी को, जब वो सामने थे उनकी महिमा समझ नहीं पाए, अब जब समझ आया है तो वो हमारे साथ हैं मगर फिर भी हम उन्हें ढूंढ रहे हैं, खैर अपने विषय पर वापस आते हुए आपको बताऊँ,महाराजजी से गुरूजी का सम्बन्ध.
            मैंने पहले ही बताया था की कैसे महाराजजी के दर्शन मुझे मिले अब मन में शांति थी क्योंकि एक संत का आशीर्वाद भरा हाथ मुझ पर था इस लिए, एक रात मैंने एक स्वप्न देखा की मैं गुरूजी के आश्रम के gate के आगे  खड़ी  थी और गुरूजी सत्संग के लिए ऊपर के कमरे में जारहे हैं और उनके साथ पूज्य महाराजजी भी हैं और मुझे देख कर दोनों मेरी तरफ मुड़े और मुझे  हाथ उठा कर वहीँ से आशीर्वाद दिया और फिर ऊपर चले गए, थोड़ी देर में फिर दिखाई दिया की गुरूजी अपने पास महाराजजी को बैठा कर भोजन करा रहे हैं और मैं उनके सामने आकर बैठ गयी हूँ और गुरूजी ने फिर महाराजजी से कहा की "अब आप ही इसका ध्यान रखिये ",इतना ही देखा की मेरी आँखें  खुल गयी और मैंने एक बार फिर अपने अंदर एक नयी उर्जा का एहसास किया तब से ही मैंने उन्हें अपने पूज्य गुरूजी की प्रतिमूर्ति के रूप में पाया है, और महाराजजी (जिन्हें मैं गुरुदेव कहती हूँ) ने मुझे एक शिष्य एक अपने बच्चे की तरह ही स्वीकार किया और प्यार दिया है, और अब हमेशा उनके आशीर्वाद का हाथ हम पर बना रहता है. मुझे पूरा विश्वास है की पूज्य गुरूजी और महाराजजी कोई अलग-२ नहीं एक ही हैं और न सिर्फ इन दोनों संतो में एकत्मत्मकता है बल्कि उन सभी संतो और महापुरुषों में भी ये ही एकात्मकता है क्योंकि उनकी सबकी सोच सब का पथ एक ही है तो वो अलग भी कैसे हो सकते हैं सभी के ह्रदय में वो ही दया वो ही कोमलता मिलती है सभी छल कपट से दूर बस एक ही लक्ष्य रखते हैं की इस दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु भक्ति में लगाना, और उनको उस परम सत्ता जो की सत्य है उसका ज्ञान करना, चाहे उसका रास्ता कहीं से भी आता हो मगर उनको उस लक्ष्य तक पहुँचाना ही उनका कर्त्तव्य है इस लिए उनको अलग समझना हमारी बहुत बड़ी भूल होगी. आज के लिए इतना ही बहुत है. आप सभी को जय श्री राधे जय श्री कृष्ण जय  गुरूजी की. have a nice day.

Wednesday, December 1, 2010

Pujya Rawatpura Sarkaar ke darshan


  जय गुरुदेव (पूज्य श्री रावतपुरा सरकारजी)

राधे-राधे,
           आप लोग सोच रहे होंगे ये किसकी बातें लिखने लगी, तो पहले आप लोगों को थोडा कुछ पूज्य रावतपूरा सरकार के बारे में लिखना चाहूंगी चम्बल के बीहड़ों में झाँसी व ग्वालियर के पास एक खुबसूरत कह सकते हैं की बीहड़ों में स्वर्ग है वह जगह नाम है रावतपुरा वैसे आप लोगों में से शायद कई लोग इस जगह और वहां के रखवाले पूज्य रावतपुरा सरकार (हनुमानजी का मंदिर है) से परिचित होंगे और उसी जगह एक संत का आगमन हुआ जिनके आते ही वो जगह स्वर्ग बन गयी उनका नाम पूज्य श्री रविशंकर जी महाराज है, जिनको हनुमानजी का अवतार मना जाता है, और इसी लिए उन्हें रावतपुरा सरकार के नाम से जानते हैं, उनके गुरुदेव से भी शायद सभी लोग परिचित होंगे, परम पूज्य श्री देवरहा बाबाजी,  मैंने सुना है की श्री रावतपुरा सरकारजी  मेरे पूज्य गुरूजी के गुरुभाई हैं, तो गुरूजी की कृपा तो होनी ही थी और इसी लिए गुरूजी के महासमाधि के बाद हमे रावतपुरा सरकारजी की शरण में जाने की प्रेरणा गुरूजी से मिली, इस बारे में आगे बताऊंगी, अभी उनके प्रथम दर्शन के बारे में बता देती हूँ,
          बात उन दिनों की है जब मैं university में अद्ध्यापन कार्य किया करती थी उस समय हमारे university registrar जो की रावतपुरा सरकारजी के परम शिष्य थे, के यहाँ उनका आगमन हुआ ये बात दीदी को भी पता चली उन्होंने कहा की इतने बड़े संत आये हैं तो हमे उनके दर्शन के लिए जाना चाहिए घर से सभी लोग उनके दर्शन करने जाने लगे, मुझसे भी चलने को कहा, मगर मैंने यह कह कर जाने को मना कर दिया की मैं अपने गुरूजी के अलावा और किसी के दर्शन नहीं करना चाहती, ये मेरी भूल थी, भूल ही क्यों? ये तो  मेरा अपराध था जो एक संत की अवज्ञा की थी, जो बाद में समझ में आया. सब उनके दर्शन करके बहुत आनंदित लौटे मैं वि.वि. जाने की तैयारी कर रही थी माँ ने फिर कहा की दर्शन कर लेना मैं हाँ कह कर चली गयी, जब लंच टाइम हुआ तो मैंने मिलने जाने की सोची, गयी मगर उस समय वो किसी से मिल नहीं रहे थे और ४ बजे आने को कहा अब मैं ४ बजे फिर गयी लम्बी लाइन लगी हुई थी मै भी जा कर लग गयी लाइन में सब उनके दर्शन कर के ख़ुशी-२ निकल रहे थे मेरी भी अब उनसे मिलने की इच्छा प्रबल होने लगी थी पर जैसे ही मेरा नंबर आया तो उनके कार्यकर्त्ता  ने कहा अब नहीं दर्शन हो सकते अब गुरुदेव ध्यान में चले गए हैं और मुझे बिना दर्शनों के ही वापस आना पड़ा, पूरी रात मुझे नींद नहीं आयी क्योंकि समझ आगया था की ये मेरे अपराध का फल है, बस अगले दिन जल्दी उठी और जल्दी ही तैयार हो कर सोचा उनके दर्शन करने जाऊंगी पहले, फिर ही अपने अन्य कार्य करूंगी और university के लिए निकल पड़ी, और जब आधे रास्ते में ही पहुंची होंगी की सामने से गाड़ियों का लम्बा काफिला तेजी से आता हुआ दिखा जिन्हें देखते ही समझ में आगया की ये तो रावतपुरा सरकार जी का काफिला है, अब तो मुझे समझ आने में जरा भी देर नहीं लगी की वो तो आज यहाँ से प्रस्थान कर रहे हैं, बस अब क्या कर सकती थी, वैसे अब मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा थी इस लिए मैंने उन्हें ऐसे ही वहां रुक कर प्रणाम करने की सोची और आँख बंद करके प्रणाम किया मन-ही-मन में और अपने अपराध के लिए माफ़ी भी मांगी मन थोडा उदास था, मगर जैसे ही आँखे खोली तो देखा की जो गाड़ियां इतनी तेजी से भाग रहीं थीं उनमे से एक गाड़ी बिलकुल कम रफ़्तार से चल रही थी और मेरे करीब से ऐसे गुजरी जिससे मै उसमे बैठे हर व्यक्ति को ठीक-ठीक देख सकती थी और मेरी निगाहें गुरुदेव पर जा कर रुक गयीं मैंने उन्हें झुक कर प्रणाम किया तो उन्होंने मेरी तरफ देखा फिर वो गाड़ी आगे तेज़ी से बढ़ गयी,कहते हैं न की संत ह्रदय नवनीत सामना वो तो हर एक को माफ़ कर देते हैं और सिर्फ हम पर कृपा दृष्टि ही रखते हैं , बस हम ही उन्हें समझने में कमी करते हैं क्योंकि हम इस संसार में खोये हुए हैं और सबको एक ही नज़र से देखते हैं, मगर उनका वो दिव्य दर्शन कर मन उनके और दर्शनों की प्यास को बेचैन हो गया था, मगर अभी तो कुछ नहीं हो सकता था, खैर फिर मेरा आगे जाने का मन ही नहीं हुआ और मैं वापस घर आगई मैंने माँ को आकर सब बताया उन्होंने कहा चल अभी के लिए इतना ही काफी है अब मन में इच्छा जागी है तो आगे भी दर्शन मिलेंगे मुझे पूरा विश्वास है.और मुझे उस दिन का इंतज़ार रहने लगा, और गुरुदेव ने बहुत जल्दी ही मेरी इच्छा पूरी कर दी और तब से उनके दर्शनों का व उनसे मिलने बात करने यहाँ तक की अपनी परेशानियों को उनसे फ़ोन पर discuss करने का भी सौभाग्य मिलता रहता है, आप लोगों को बताने में मैं कोई अतिश्योक्ति नहीं कर रही हूँ जब आप उनसे मिलेंगे तो आप भी पायेंगे की उनसे मिलने के व उनके दर्शनों मात्र से आपकी सारी परेशानियाँ दूर हो जायेंगी और आप परम शांति का अनुभव करेंगे, बस उनपे श्रद्धा रख कर तो देखिये मेरा पूरा विश्वास है, वो तो कृपा करने के लिए हर वक़्त तैयार हैं बस हमे उन तक पहुँचने की देर है , उनको मेरा शत-शत प्रणाम.
आगे की कथा बाद में लिखूंगी आज्ञा चाहती हूँ. जय श्री राधे,जय श्री कृष्ण, जय गुरुदेव, आप सभी का दिन शुभ हो भगवान् की कृपा आप सभी पर बनी रहे यही कामना है.