राधे-राधे आप सभी को,
आज मै एक सत्य घटना आप लोगों को बताने जा रही हु जो मेरी माँ के किसी पुराने परिचित दंपत्ति से ताल्लुक रखती है और माँ बचपन से हमे ये बात बताती आ रहीं हैं, आज आप लोगों के साथ मैं शेयर कर रही हूँ,
बात बहुत पुरानी है उस समय की जब भारत-पाक विभाजन हुआ था और लोगों को अपना स्थान परिवर्तन करना पड़ रहा था, उस समय माँ के परिवार के एक पुराने परिचत, एक सिख दंपत्ति रावलपिंडी में रहा करते थे, उनके कोई संतान नहीं थी अतः दोनों ने राधा-कृष्ण को ही अपना पुत्र बना लिया था और उनकी उसी रूप में सेवा किया करते थे, दिन-रात बस उनका ही ध्यान किया करते थे, परन्तु विभाजन के समय वहां दंगे भड़कने से लोग घर खाली कर शरणार्थी कैम्पों की तरफ भाग रहे थे, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था, हालत बद से बदतर होते जा रहे थे, हिन्दू व सिख पाकिस्तान छोड़ कर भारत की और आ रहे थे, इस दंपत्ति ने भी अपना कुछ आवश्यक सामान उठाया और पति ने भी महिला वेश बनाया और बाहर निकल आये चारों और आगजनि-मारकाट मची हुयी थी, जैसे तैसे बचते बचाते आधी दूर पहुंचे की पत्नी को याद आया की अरे! लाला तो घर पर ही रह गए, उलटे पैर दोनों उन्हें लेने दौड गये, और एक कपडे में लपेट कर उन्हें तथा उनके वस्त्र इत्यादि भी एक बक्से में रख,बाहर निकलने लगे मगर अब तक हालात और ख़राब हो चुके थे, ये दोनों सोचने लगे की अब तो लाला साथ हैं वो ही कोई रास्ता निकालेंगे , की उसी समय दो छोटे-छोटे (१०-११ वर्ष के,) बालक वहां आये (एक गोरा व एक सांवला था) और पूछा आप लोगों को कहाँ जाना है , इस पर उन्होंने बताया की हमे शरणार्थी कैंप तक जाना है, मगर हालात तो काफी ख़राब हैं कैसे वहां तक पहुँच पाएंगे? वो दोनों मुस्कुराये और बोले हमे एक रास्ता पता है जहाँ पर दंगो का प्रभाव नहीं है आप लोग साथ आईये हम आप लोगों को वहां तक सकुशल पहुँचा देते हैं, दोनों ने भगवन को याद किया और ठाकुरजी को सीने से लगाये, उन छोटे बालकों के पीछे-२ चल दिए, सच में वो जिस रास्ते से उन्हें ले जा रहे थे वो जगह पूरी तरह शांत थी, अब वे शिविर तक आसानी से पहुँच गए थे, पहुँच कर, उन्होंने उन दोनों बालकों को धनंयवाद दिया, इस पर वे दोनों कुछ रहस्यमय ढंग से मुस्कुराये और वापस चले गए, दम्म्पति पूरी तरह समझ गए थे की ये और कोई नहीं कृष्ण और बलराम थे, अब तो उन्हें अपने गोपालजी पे विश्वास और दृढ हो चला था, और वहां से वो दोनों गोपालजी को ले कर सीधे वृन्दावन आगये, और फिर वही हमेशा के लिए बस गए, वहां आज भी राधा-कृष्णजी विराजमान हैं उनका अब मंदिर भी रमण रेती में बन गया है , अब वो दंपत्ति तो स्वर्गारोहण कर चुके हैं मगर उनके पुत्र (गोपालजी) अब भी उनके (भगतजी के नाम से वृन्दावन में जाने जाते हैं)द्वारा बनवाए मंदिर में विराजित हैं, और अन्य भक्तों को भी अपने दिव्य दर्शनों का प्रसाद वितरित कर रहे हैं, ये समस्त घटना मेरी माताजी को उन्ही दंपत्ति ने खुद ही कई बार सुनाई थी इस लिए इसकी सत्यता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता. और ये घटना हमे उस परम सत्ता की उपस्थिति व दिव्यता दोनों का अनुभव करवाने में पूर्णरुपेन सक्षम है, ऐसा मेरा मानना है, आगे भी ऐसे ही अनुभवों से आप लोगों को अवगत कराती रहूंगी इसी कामना के साथ, अभी के लिए आज्ञा चाहती हूँ, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, भगवन की ससीम कृपा आप सभी पर हमेशा बनी रहे ये ही कामना करती हूँ, राधे -राधे.
नोट: ( कल उन्ही से संबद्धित कुछ और वृत्तान्त से आप लोगों से शेयर करूंगी)
मेरे प्यारे बनके बिहारी,
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