Sunday, June 5, 2011

Bharat-Pak Bantware ki satya ghatna



राधे-राधे आप सभी को,

आज मै एक सत्य घटना आप लोगों को बताने जा रही हु जो मेरी माँ के किसी पुराने परिचित दंपत्ति से ताल्लुक रखती है और माँ बचपन से हमे ये बात बताती आ रहीं हैं, आज आप लोगों के साथ मैं शेयर कर रही हूँ,
             बात बहुत पुरानी है उस समय की जब भारत-पाक विभाजन हुआ था और लोगों को अपना स्थान परिवर्तन करना पड़ रहा था, उस समय माँ के परिवार के एक पुराने परिचत, एक  सिख दंपत्ति रावलपिंडी  में रहा करते थे, उनके कोई संतान नहीं थी अतः दोनों ने राधा-कृष्ण  को ही अपना पुत्र बना लिया था और उनकी उसी रूप में सेवा  किया करते थे, दिन-रात बस उनका ही ध्यान किया करते थे, परन्तु विभाजन के समय वहां दंगे भड़कने से लोग घर खाली  कर शरणार्थी कैम्पों की तरफ भाग रहे थे, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था, हालत बद से बदतर होते जा रहे थे, हिन्दू व सिख पाकिस्तान छोड़ कर भारत की और आ रहे थे, इस दंपत्ति ने भी अपना कुछ आवश्यक सामान उठाया और पति ने भी महिला वेश बनाया और बाहर  निकल आये चारों और आगजनि-मारकाट मची हुयी थी, जैसे तैसे बचते बचाते आधी दूर पहुंचे की पत्नी को याद आया की अरे! लाला तो घर पर ही रह गए, उलटे पैर दोनों उन्हें लेने दौड गये, और एक कपडे में लपेट कर उन्हें तथा उनके वस्त्र इत्यादि भी एक बक्से में रख,बाहर  निकलने लगे मगर अब तक हालात  और ख़राब हो चुके थे, ये दोनों सोचने लगे की अब तो लाला साथ हैं वो ही कोई रास्ता निकालेंगे , की उसी समय दो छोटे-छोटे (१०-११ वर्ष के,) बालक वहां आये (एक गोरा व एक सांवला था) और पूछा आप लोगों को कहाँ जाना है , इस पर उन्होंने बताया की हमे शरणार्थी कैंप तक जाना है, मगर हालात  तो काफी ख़राब हैं कैसे वहां तक पहुँच पाएंगे? वो दोनों मुस्कुराये और बोले हमे एक रास्ता पता है जहाँ पर दंगो का प्रभाव नहीं है आप लोग साथ आईये हम आप लोगों को वहां तक सकुशल पहुँचा  देते हैं, दोनों ने भगवन को याद किया और ठाकुरजी को  सीने  से लगाये, उन छोटे बालकों के पीछे-२ चल दिए, सच में वो जिस रास्ते  से उन्हें ले जा रहे थे वो जगह पूरी तरह शांत थी, अब वे शिविर तक आसानी से पहुँच गए थे, पहुँच कर, उन्होंने उन दोनों बालकों को धनंयवाद दिया, इस पर वे दोनों कुछ रहस्यमय ढंग से मुस्कुराये और वापस चले गए, दम्म्पति पूरी तरह समझ गए थे की ये और कोई नहीं कृष्ण और बलराम थे, अब तो उन्हें अपने गोपालजी पे विश्वास और दृढ हो चला था, और वहां से  वो दोनों गोपालजी को ले कर सीधे वृन्दावन आगये, और फिर वही हमेशा के लिए बस गए, वहां आज भी राधा-कृष्णजी  विराजमान हैं उनका अब मंदिर भी  रमण रेती में बन गया है , अब वो दंपत्ति तो स्वर्गारोहण कर चुके हैं मगर उनके  पुत्र (गोपालजी) अब भी उनके (भगतजी के नाम से वृन्दावन में जाने जाते हैं)द्वारा बनवाए मंदिर  में विराजित हैं, और अन्य भक्तों को भी अपने दिव्य दर्शनों का प्रसाद वितरित कर रहे हैं, ये समस्त घटना मेरी माताजी को उन्ही दंपत्ति  ने खुद ही  कई बार सुनाई थी इस लिए इसकी सत्यता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता. और ये घटना हमे उस परम सत्ता की उपस्थिति व दिव्यता दोनों का अनुभव करवाने में पूर्णरुपेन सक्षम है, ऐसा मेरा मानना है, आगे भी ऐसे ही अनुभवों से आप लोगों को अवगत कराती रहूंगी इसी कामना के साथ, अभी के लिए आज्ञा चाहती हूँ, जय श्री राधे, जय श्री कृष्ण, भगवन की ससीम कृपा आप सभी पर  हमेशा बनी रहे ये ही कामना करती हूँ, राधे -राधे.

नोट: ( कल उन्ही से संबद्धित कुछ और वृत्तान्त से आप लोगों से शेयर करूंगी)

      मेरे प्यारे बनके बिहारी,

Friday, June 3, 2011

Lakshya sab ka ek hai - Puttaparthi vrittant

राधे-राधे,



माफ़ कीजियेगा काफी दिनों बाद लिख रही  हूँ कारण मेरी अपनी पदाई में व्यस्तता है आशा है आप सब भी मेरी इस मजबूरी को भली भाँती समझ सकेंगे, मगर आज जब मै आप लोगों के बीच एक बार फिर उपस्थित  हुयी तो मुझे ये देख कर बहुत हर्ष का अनुभव हुआ की आप लोग मेरे इस छोटे से प्रयास में मेरे साथ हैं और अपने विचार व   advises   मुझे प्रदान कर रहे हैं आशा करती हूँ  की ऐसे ही आप लोग मुझे आगे भी अपनी उत्त्सह्वार्धक सलाहें देते रहेंगे, आप सभी को धान्यवाद करते हुए मैं अब आगे अपने पुत्तापर्थी वृत्तान्त को विस्तार से लिखने की आज्ञा चाहती हूँ..मगर देखिये न जिनके बारे मै लिख रही हूँ वो हमे यूँ ही मजधार में छोड  कर चले गए, सारे विश्व को रोता बिलखता छोड़ गए, मगर जो सर्व विद्यमान हैं उनके लिए आंसू बहाना क्या सही होगा ? शायद नहीं, क्योंकि वो तो सत्य हैं और ये संसार व उनका वो शरीर तो मिथ्या ही है जिसे हम सत्य समझ रहे है, मगर क्या करें हैं तो इंसान ही न,जानते हुए भी इसी को सत्य मानने का भरसक प्रयत्न  करते हैं, की शायद भगवान् को हम पर कभी दया आजाये और हमे अमरता प्रदान कर दे. खैर ये तो एक छोटा सा उपहास मात्र है, चलिए हम अपने विषय पर आते हैं.

                   जैसा की मैंने आपको पहले बताया की कैसे हमे जाते ही बाबा के दर्शन प्राप्त हुए, उसी दिन दोपहर दो बजे से हम बाबा के अगले (संध्याकालीन) दर्शनों के लिए कतार में जा लगे, बहुत लम्बी लाइन थी, तथा पूरे १ घंटे के इन्तेजार के बाद सभा परिसर में प्रवेश मिल पाया सभी व्यवस्थित तरीके से कतार में बैठत गए,सभी शान्ति पूर्वक बैठे थे ,  आज कुछ युवा अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम भी बाबा के समक्ष प्रस्तुत करने आये थे और इस समय सभी को बाबा के दर्शनों की प्रतीक्षा थी पूरे आधा घंटे बाद मुख्य मार्ग से बाबा कार द्वारा , ड्राईवर के बाजू वाली सीट पर बैठे सभी भक्तों के पास से निकले, बस अब मैं आप लोगों को चाहूँ भी तो वोह एहसास नहीं करवा पाऊंगी जो मुझे व वहां उपस्थित अन्य भक्तों को हुआ होगा , सभी रामांचित थे अनायास ही अश्रुधारा बह निकली थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हमारे अन्दर के विकार खिंच कर बाहर निकल रहे हैं और एक नए जन्म का आभास हो रहा था, बस ये ही लग रहा था जैसे मन में अब कोई कामना नहीं है, संसार के सारे कष्ट मिट गए हैं और अब कुछ डरने या शिकायत करने के लिए भी बाकी नहीं, अब तो ऐसा लग रहा था की मन से सब ईर्ष्या द्वेष सब जाते रहे हैं, बस एक ही सत्य था की अब भगवन का साक्षात्कार हमे प्राप्त हो रहा है, बता नहीं सकती की उस समय वातावरण में कैसी एक शांति, सुगंध, मिठास, और स्वच्छता का एहसास हो रहा था वहां, जो कुछ भी मैं लिख रही हूँ मुझे पूरा विश्वास है की जिन्होंने भी बाबा के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त किया होगा सभी ने ये ही फील किया होगा. बाबा आये आरती हुई कुछ भजन हुए फिर युवा मंच ने अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया बाबा बहुत तन्मय हो  कार्यक्रम का आनंद लेते रहे मगर उनकी उस सत्य शांत आभा जो निरंतर उनके मुखमंडल पर बनी हुयी थी अविस्मरनीय है, बाबा ने सभी कलाकारों को आशीर्वाद दिया फोटो भी खिंचवाए व कुछ को बुला कर वार्तालाप भी किया, बाबा ने हम सभी को अपने द्वारा आशीर्वाद स्वरुप बूंदी के लड्डू दिए, मैंने आज भी उनके उस प्रसाद को सम्हाल के रखा हुआ है और चाहती हूँ की ज्यादा से ज्यादा लोगों को वोह बाँट सकूँ क्योंकि उस प्रसाद की अपनी अलग ही महत्ता है, मगर मैं ये भी जानती हूँ की उन्ही के लिए है जो इस बात में व उनपर श्रद्धा रखते हैं. उस दिन बाबा काफी देर रुके और फिर आरती के बाद बाबा चले गए, मगर उनके दर्शनों का जो सौभाग्य हमे प्राप्त हो चूका था उसकी जो सुखद अनुभूति हमे हुई उसकी व्याख्या असंभव है. जय साईं राम.

जब हम ये दर्शन प्राप्त कर रहे थे तब इस बात की तो जरा सी भी आशंका मात्र भी नहीं थी की बाबा हमे इतनी जल्दी छोड़ के चले जायेंगे. मगर उनकी महिमा तो वो ही जाने वो कब क्या करें हम सामान्य प्राणी क्या समझ सकते हैं. मगर आज एक खालीपन का अनुभव जरूर है जीवन में, जबकि पता है की बाबा कही नहीं गए वो तो हर जगह हर वक़्त हर किसी के अन्तः करन में विद्यमान हैं, इस लिए उनको अपने से अलग जब भी समझते है मूर्खतापूर्ण लगता है, बाबा हम आपको बहुत याद करते हैं, क्योंकि आपको उस साकार रूप में प्राप्त कर चुके हैं इस लिए आपकी वो ही छबि ह्रदय पटल पर छ्प चुकी है, और उसी रूप को सत्य मानने लगी है, we love you baba, जय साईं राम. 
                    पुत्त्पर्थी का एक दिन अपूर्व आनंद के साथ बीत गया था, रात सोने से पूर्व हमने सुबह की योग क्लास  और प्रभात फेरी में जाने का निश्चय किया और सुबह पौने चार बजे तक वहां उपस्थित होने का कार्यक्रम  बनाया व सो गए मगर सुबह की नींद के आगे मैंने तो घुटने टेक दिए, मगर दीदी जरूर गयीं मै आरती तक तैयार हो गयी व सभा कक्ष पहुँच गयी, वो ही एहसास फिर होने लगा था मगर हाँ  आज बाबा अभी सुबह दर्शनों को नहीं आये थे, आरती खत्म कर हम आश्रम, पुस्तकालय व शौपिंग सेण्टर देखने गए, पुस्तकालय बहुत विशाल व व्यवस्थित था अन्य जगहें भी बहुत सुन्दर थीं स्वछता सर्वविद्द्यमान थी सुन्दर हरियाली, सुहाना वातावरण था, हमने अब बाबा के लगाये उस अद्दभुत वट वृक्ष के दर्शन करने की सोच पहाड़ी नुमा रास्ते  का अनुसरण करना शुरू किया, तभी कुछ ऊपर चढ़े की बाबा के अस्पताल के मुख्य द्वार के पास हमे एक कुत्ता मिला जो की सामान्य से कुछ ज्यादा बड़ा था हमे देख कर ऐसे दुम हिलाने लगा मानो हमारा स्वागत  कर रहा हो, जब हम उसके पास पहुंचे तो वो ऐसे मिलने लगा मानो बहुत पुराना परिचित हो, हमने भी उसको प्यार किया, मगर फिर लगा इसे कुछ देना चाहिए और दीदी तुरंत नीचे गयीं और बाज़ार से कुछ ब्रेड और बिस्कुइट्स खरीद लाईं मगर जब हमने उसे दिया तो वो पहाड़ी की तरफ दौड़ गया हमने वो खाना दुसरे कुत्ते को दिया और उसके पीछे भागे मगर देखते ही देखते वो कुत्ता गायब हो गया और फिर नहीं दिखा मगर वहां से एक १०-११ वर्ष का बालक आता दिखाई दिया, जो  था तो बहुत ही साधारण मगर अनायास ही वह हमारा ध्यान अपनी ओर  खिंचवा रहा था हमने उस लड़के से कुत्ते के बारे में पूछा तो वोह बोला नहीं उधर से कोई नहीं गुजरा, और फिर वो लड़का खुद ही हमारा पथ प्रदर्शक बन गया, हम वट वृक्ष के पास पहुँच गए जो ऊंची पहाड़ी पर था और उसकी शाखाएं इस तरह फैली हुईं थीं मनो  बाहें फैलाये हमारा स्वागत कर रही हों, ठंडी हुवा चल रही थी कुछ देसी-विदेशी भक्त वहां ध्यान लगाये बैठे थे हम वहां शांति से बैठ गए ,तब उस लड़के ने बताया की यहाँ आप अपने मन की कामनाएं लिख कर ९ पत्थरों के निचे दबा के बाबा से प्रार्थना करो वो जरूर ही पूरी करते हैं,हमने वैसा ही किया, वैसे इस वट वृक्ष केबारे में हमने पड़ा था की बाबा ने ये वृक्ष रोपित किया था जिसकी खासियत ये है की बाबा ने एक ताम्र पत्र इसके नीची गड्वाया था जिसमे वो समस्त बीज-मंत्र लिखे हैं जो की उस बोधी गया के वृक्ष के नीचे थे जहाँ भगवान् बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी. अतः इसे बोधी वृक्ष ही कहा जाता है और लोग यहाँ बैठ कर शांति का अनुभव करते हैं व भगवत ध्यान करते हैं. हम भी थोड़ी देर वहां बैठे,  इस वक़्त भी वो लड़का हमारे आस पास ही घूमता रहा, हमने वहां उसके साथ कुछ फोटो भी खींचे, फिर वो बोला बाबा का संग्रहालय भी  देख लो, और हमे वो  पहाड़ी पर कुछ और ऊपर ले गया मगर उस समय वो बंद मिला, हम लौटने लगे तो कुछ दूर वो लड़का तेजी से बड़ा और फिर कुछ हाथ में ले कर आया और हमे दिखाने लगा, जो की एक पारदर्शी से पत्थर का बना पिरामिड था, वो उसे हम को उपहार स्वरुप देने लगा ,मगर दीदी ने उससे पूछा कहाँ से लाये ये तो उसने बाबा के गेस्ट हाउस के तरफ इशारा करके कहा वहां से, इसपर दीदी ने उसे ये तुरंत वहीँ वापस रख आने को कहा वो निराश हो वापस रख आया और फिर अस्पताल के गेट के अन्दर प्रवेश कर गया, इतने में मुझे कुछ याद आया, की हमारे भाई को एक दिन पहले सपना दिखा था , जिसमे बाबा बस में उसके संग सफ़र कर रहे हैं और उसे उन्होंने कुछ दिया है, तो जब हम उनके सुबह दर्शनों के लिए निकल रहे थे तो उसने मुझे फ़ोन पर कहा था की बाबा उसके लिए कुछ देंगे, जिसे  मै  ध्यान से ले आऊँ, जरूर, जैसे ही ये बात ध्यान आयी मैंने तुरंत दीदी से कहा कहीं बाबा ने ही तो नहीं हमे ये देना चाहा था ? बस अब तो दीदी ने दौड़ लगा दी और उस लड़के को ढूँढने लगीं वो तो जैसे हमारा इंतजार ही कर रहा था, वो बड़ा ख़ुशी-२ आया और हमे वो उपहार दे कर मुस्कुराता हुआ अस्पताल के गेट के अन्दर चला गया और पलक झपकते ही गायब हो गया, फिर हमे वापस आने तक एक बार भी वो कहीं भी दिखाई नहीं दिया, अब तो हमे पूरा विश्वास हो गया था  की ये और कोई नहीं बाबा ही थे जो उस कुत्ते और लड़के के रूप में हमारे साथ थे,  जय श्री साईं राम.