राधे-राधे ,
आप लोगों से काफी दिन दूर रही उसके लिए माफ़ी चाहती हूँ, आगे कोशिश ये ही रहेगी मेरी की आप लोगों से निरंतर जुडी रहूँ, तो क्या अब हम आगे कुछ और अपने विचार शेयर करें?
जैसा की मैं आप लोगों से पहले भी कई बार कह चुकी हूँ कि हमारे मन में अगर भगवान की जरा सी भी चाहत होती है तो वो हमे सौ गुना अपना प्यार उड़ेलने को तैयार होते हैं, मगर इसका ये मतलब कतई नहीं है की जो उन्हें याद नहीं करते उनसे भगवान् प्यार नहीं करते या उनपर वे कृपा नहीं करते, वो तो हर प्राणी मात्र पर, जो की उनकी रचित श्रृष्टि का अंग हैं, हर एक से बराबर, एक माँ की तरह प्यार करते हैं, बस इस बात को हमे समझने भर की देरी है, और फिर देखिये हम कभी उन्हें भूल नहीं सकेंगे और ना ही फिर हमे उनसे अच्छा कोई लग पायेगा. फिर तो बस हमारी पूरी दुनिया ही हमे उनके इर्द-गिर्द नज़र आएगी जो की एक परम सत्य है. मगर वो क्षण हमारे जीवन में आएगा कब? अब ये तो वो ही जानते हैं मगर हमे तो प्रयासरत रहना चाहिए न , क्योंकि अगर हम झूठे को भी एक कदम उनकी ओर बढ़ाते हैं तो वो १००० कदम दौड कर आने को तैयार हैं, तो कह सकते हैं कि राह चाहे कोई भी क्यों न हो, मगर उसका लक्ष्य परमात्मा तक पहुँचाना ही होना चाहिए, क्योंकि ये ही हमारे जीवन का सार है, बस हमे तो थोड़ी सी कोशिश करनी है बाकी तो प्रभु खुद ही मार्ग को सुलभ बनाते चले जायेंगे, इस बात का मुझे पूरा विश्वास है.......
चलिए इसी बात से सम्बंधित एक अनुभव मैं आप लोगों को बताऊँ, जो की मेरी पुत्तापर्थी की यात्रा से सम्बंधित है, मैं अपनी बहन के पास हैदराबाद गयी थी और मेरी वहां जाने की सबसे बड़ी वजह ही पुत्तापर्थी जाकर श्री सत्य साईं बाबा के दर्शन करना थी, दीदी से बात की और हमने तुरंत ही जाने के लिए प्लान बना लिया और फिर नेट से सारी informations सर्च की तो जिन ट्रेन्स के रूट देखे उनमे सारी ट्रेन्स पेनुकोंदा जो की प्रशांति निलियम से १८ km की दूरी पर है वहां ही रूकती थीं हमने भी प्लान वहां तक जाने का बनाया और सोचा वहां से टेक्सी से निलियम तक चले जायेंगे बस फिर जाने की तय्यारी शुरू की, tickets बुक हो गए और हमने अपनी यात्रा ट्रेन से रात को प्रारंभ की और सुबह ७ बजे थोड़ी लोगों में हलचल सी देखि, तो पाया धर्मावरम स्टेशन निकला था और तभी TC हमारे कम्पार्टमेंट में आकर बैठ gaya, और बस साईबाबा की कृपा का अनुभव हमे ऐसे कुछ हुआ, कि दीदी ने ऐसे ही TC से पूछ लिया की क्या ये ट्रेन प्रशांति निलियम नहीं जाती? तो उसने जवाब दिया की ट्रेन अब बस वहीँ रुकने वाली है, वो ही स्टेशन आरहा है और सिर्फ २ mt का स्तोपेज है अब लोगों की हालचल का कारण हमारे भी समझ आगया था और हमने जल्दी से अपना सामन उठाया और लोगों के साथ-साथ हम भी प्रशांति निलियम स्टेशन पर उतर चुके थे, क्या आनंदायी क्षण था वो हमारे तो वहां उतारते ही होंठों पे अनायास ही एक मुस्कराहट आगई थी और जब सामने बाबा की उस विशाल स्वागत करती हुई तस्वीर पर नज़रें पड़ी तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा क्योंकि वह ऐसा लग रहा था मानो बाबा कह रहे थे की "और देखा बुला लिया ना बिना परेशानी के तुम दोनों को,?" हमने बाबा को मन ही मन प्रणाम किया, अब क्या बताऊँ,क्या अनुभूति थी वो, कहते हैं न कि जहाँ भगवान् वास करते हैं वो जगह स्वर्ग हो जाती है, उस जगह की हर चीज़ मनो हर वक़्त रोमांचित रहती है और ऐसा कुछ वहां भी दिखाई दिया, इतनी सुहानी हवा इतना सुहाना मौसम पेड़ पौधे ऐसे हिल रहे थे मानो ख़ुशी से नृत्य कर रहे हों, सम्पूर्ण वातावरण बहुत ही मनमोहक था प्रकृति जैसे अपने प्रभु का साथ पा कर मनो ख़ुशी से इठला रही थी, और सफाई की जहाँ तक बात करें तो स्टेशन जो की भारत मुश्किल से ही खोजने पर मिलेंगे जहाँ गन्दगी ना हो, मगर यहाँ की तो बात ही और थी एक तिनका भी कहीं नहीं ढूंढ पा रहे थे, न ही पान की पीकें ही कही पड़ी हुई दिखीं, हम स्टेशन से बाहर आये तो ऑटो मिल गया निलियम तक के लिए, बस अब तो असली गोलोकधाम में प्रवेश करने जारहे थे हम, तो आप समझ ही सकते हैं न की मार्ग कैसा रहा होगा, वैसा ही साफ़ चौड़ी सपाट चमचमाती सड़क हरियाली ही हरियाली, छोटी-२ पहाड़ियां, कुछ दूर चलते ही पुत्तापर्थी की भव्यता का एहसास होने लगा क्योंकि वहां बाबा ने भव्य अस्पताल(गरीब असहाय,लाइलाज बीमारियों से पीड़ितों के लिए), संगीत महाविद्यालय, स्कूल, कॉलेज आदि का निर्माण करवाया है और उनके ही संरक्षण में हर उस विद्यार्थी,को चाहे वो किसी भी मजहब का क्यों न हो चाहे वो अमीर हो या गरीब, सब को सामान रूप से बाबा उच्चतम शिक्षा भारतीय संस्कारों के साथ वहां प्रदान करवाते हैं, मैं आप लोगों को उतना बता पाने की समरथ्य नहीं रखती की मैं बाबा के बारे में कुछ भी ठीक से लिख पाऊँ मगर मन है की अपना अनुभव जितना भी हो सके आप तक पहुँचाने कि कुछ तो कोशिश करूँ, बस इतना ही कह सकती हूँ की इस समय मैं लिखते-२ अपने अतीत में पहुँच गयी हूँ, खैर चलिए आगे बढ़ते हैं एक सुखद सफ़र के बाद आखिर हम अब प्रशांति निलियम (बाबा का निवास स्थान(आश्रम)) के गेट के सामने पहुँच गए, अभी सुबह के पौने आठं बजे थे और तभी देखा एक लम्बी क़तर लोगों की लगी थी जिसमे अचानक हलचल हो रही थी मगर हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और निलियम के गेट के सामने वाले होटल में एक कमरा रुकने के लिए पूछने लगे और भाग्य से एक मिल भी गया, अब हमने सोचा चलो स्नान आदि से निवृत्त हो कर बाबा के दर्शनो को जायेंगे मगर तभी होटल के मेनेजर ने कहा जाइए बाबा आगये हैं दर्शन कर लीजिये हमने कहा अभी तो सफ़र से आये हैं ऐसे कैसे जाएँ, मगर उन्होंने कहा आप का भाग्य अच्छा है की बाबा दर्शनो के लिए आगये हैं जल्दी जाइए, अब तो हमने अपना सामान काउंटर पे ही छोड़ा और भाग लिए अंदर कि तरफ जाने के लिए, पहले सिक्यूरिटी चेक्किंग होती है तभी जाने को मिलता है उसमे थोडा समय लगा मगर हम फिर जब तक साधना हाल तक पहुँच गेट बंद हो गया अब हम दूसरे गेट के पास पहुंचे जहाँ पर एक कारसेवक लोगों को अन्दर जाने से रोक रहा था, मैंने देखा वो खुद भी उनके दर्शनो में लगा हुआ था मैंने उससे कहा की हमे भी दर्शन करने दे तो उसने जगह बना दी अब बाबा साफ़ दिख रहे थे, हम तो रोमांचित थे आँखों से आंसू अनायास ही निकले जारहे थे, क्या एहसास था वो बता नहीं सकती बस अनुभव ही कर सकती हूँ, बाबा के पहले दर्शनो का, हमने वहीँ खड़े हो कर बाबा की आरती का लाभ लिया और बस बाबा वापस चले गए, हमने उस कार्यकर्ता को धन्यवाद दिया तो वो पूछने लगा की हम क्या आज ही आये हैं हमने कहा हैं अभी ही पहुंचे हैं, तो वो बोला आपलोग तो बहुत भाग्यशाली हैं जो आते ही बाबा के दर्शन मिल गए मैं तो यहाँ तीन दिनों से दर्शनो को खड़ा हूँ तब कहीं जाकर आज बाबा आये हैं, अब तो हमे होटल के मेनेजर के प्रति भी कृतज्ञता महसूस होने लगी.............और हमने होटल लौट उसे भी धन्यवाद दिया, और बाबा का अगला दर्शन समय पूछा तो वो बोला भाग्य अच्छा रहा तो बाबा जरूर दर्शन देंगे. -------------------
आगे का वृत्तान्त कल ..............................
आप लोगों से काफी दिन दूर रही उसके लिए माफ़ी चाहती हूँ, आगे कोशिश ये ही रहेगी मेरी की आप लोगों से निरंतर जुडी रहूँ, तो क्या अब हम आगे कुछ और अपने विचार शेयर करें?
जैसा की मैं आप लोगों से पहले भी कई बार कह चुकी हूँ कि हमारे मन में अगर भगवान की जरा सी भी चाहत होती है तो वो हमे सौ गुना अपना प्यार उड़ेलने को तैयार होते हैं, मगर इसका ये मतलब कतई नहीं है की जो उन्हें याद नहीं करते उनसे भगवान् प्यार नहीं करते या उनपर वे कृपा नहीं करते, वो तो हर प्राणी मात्र पर, जो की उनकी रचित श्रृष्टि का अंग हैं, हर एक से बराबर, एक माँ की तरह प्यार करते हैं, बस इस बात को हमे समझने भर की देरी है, और फिर देखिये हम कभी उन्हें भूल नहीं सकेंगे और ना ही फिर हमे उनसे अच्छा कोई लग पायेगा. फिर तो बस हमारी पूरी दुनिया ही हमे उनके इर्द-गिर्द नज़र आएगी जो की एक परम सत्य है. मगर वो क्षण हमारे जीवन में आएगा कब? अब ये तो वो ही जानते हैं मगर हमे तो प्रयासरत रहना चाहिए न , क्योंकि अगर हम झूठे को भी एक कदम उनकी ओर बढ़ाते हैं तो वो १००० कदम दौड कर आने को तैयार हैं, तो कह सकते हैं कि राह चाहे कोई भी क्यों न हो, मगर उसका लक्ष्य परमात्मा तक पहुँचाना ही होना चाहिए, क्योंकि ये ही हमारे जीवन का सार है, बस हमे तो थोड़ी सी कोशिश करनी है बाकी तो प्रभु खुद ही मार्ग को सुलभ बनाते चले जायेंगे, इस बात का मुझे पूरा विश्वास है.......
चलिए इसी बात से सम्बंधित एक अनुभव मैं आप लोगों को बताऊँ, जो की मेरी पुत्तापर्थी की यात्रा से सम्बंधित है, मैं अपनी बहन के पास हैदराबाद गयी थी और मेरी वहां जाने की सबसे बड़ी वजह ही पुत्तापर्थी जाकर श्री सत्य साईं बाबा के दर्शन करना थी, दीदी से बात की और हमने तुरंत ही जाने के लिए प्लान बना लिया और फिर नेट से सारी informations सर्च की तो जिन ट्रेन्स के रूट देखे उनमे सारी ट्रेन्स पेनुकोंदा जो की प्रशांति निलियम से १८ km की दूरी पर है वहां ही रूकती थीं हमने भी प्लान वहां तक जाने का बनाया और सोचा वहां से टेक्सी से निलियम तक चले जायेंगे बस फिर जाने की तय्यारी शुरू की, tickets बुक हो गए और हमने अपनी यात्रा ट्रेन से रात को प्रारंभ की और सुबह ७ बजे थोड़ी लोगों में हलचल सी देखि, तो पाया धर्मावरम स्टेशन निकला था और तभी TC हमारे कम्पार्टमेंट में आकर बैठ gaya, और बस साईबाबा की कृपा का अनुभव हमे ऐसे कुछ हुआ, कि दीदी ने ऐसे ही TC से पूछ लिया की क्या ये ट्रेन प्रशांति निलियम नहीं जाती? तो उसने जवाब दिया की ट्रेन अब बस वहीँ रुकने वाली है, वो ही स्टेशन आरहा है और सिर्फ २ mt का स्तोपेज है अब लोगों की हालचल का कारण हमारे भी समझ आगया था और हमने जल्दी से अपना सामन उठाया और लोगों के साथ-साथ हम भी प्रशांति निलियम स्टेशन पर उतर चुके थे, क्या आनंदायी क्षण था वो हमारे तो वहां उतारते ही होंठों पे अनायास ही एक मुस्कराहट आगई थी और जब सामने बाबा की उस विशाल स्वागत करती हुई तस्वीर पर नज़रें पड़ी तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा क्योंकि वह ऐसा लग रहा था मानो बाबा कह रहे थे की "और देखा बुला लिया ना बिना परेशानी के तुम दोनों को,?" हमने बाबा को मन ही मन प्रणाम किया, अब क्या बताऊँ,क्या अनुभूति थी वो, कहते हैं न कि जहाँ भगवान् वास करते हैं वो जगह स्वर्ग हो जाती है, उस जगह की हर चीज़ मनो हर वक़्त रोमांचित रहती है और ऐसा कुछ वहां भी दिखाई दिया, इतनी सुहानी हवा इतना सुहाना मौसम पेड़ पौधे ऐसे हिल रहे थे मानो ख़ुशी से नृत्य कर रहे हों, सम्पूर्ण वातावरण बहुत ही मनमोहक था प्रकृति जैसे अपने प्रभु का साथ पा कर मनो ख़ुशी से इठला रही थी, और सफाई की जहाँ तक बात करें तो स्टेशन जो की भारत मुश्किल से ही खोजने पर मिलेंगे जहाँ गन्दगी ना हो, मगर यहाँ की तो बात ही और थी एक तिनका भी कहीं नहीं ढूंढ पा रहे थे, न ही पान की पीकें ही कही पड़ी हुई दिखीं, हम स्टेशन से बाहर आये तो ऑटो मिल गया निलियम तक के लिए, बस अब तो असली गोलोकधाम में प्रवेश करने जारहे थे हम, तो आप समझ ही सकते हैं न की मार्ग कैसा रहा होगा, वैसा ही साफ़ चौड़ी सपाट चमचमाती सड़क हरियाली ही हरियाली, छोटी-२ पहाड़ियां, कुछ दूर चलते ही पुत्तापर्थी की भव्यता का एहसास होने लगा क्योंकि वहां बाबा ने भव्य अस्पताल(गरीब असहाय,लाइलाज बीमारियों से पीड़ितों के लिए), संगीत महाविद्यालय, स्कूल, कॉलेज आदि का निर्माण करवाया है और उनके ही संरक्षण में हर उस विद्यार्थी,को चाहे वो किसी भी मजहब का क्यों न हो चाहे वो अमीर हो या गरीब, सब को सामान रूप से बाबा उच्चतम शिक्षा भारतीय संस्कारों के साथ वहां प्रदान करवाते हैं, मैं आप लोगों को उतना बता पाने की समरथ्य नहीं रखती की मैं बाबा के बारे में कुछ भी ठीक से लिख पाऊँ मगर मन है की अपना अनुभव जितना भी हो सके आप तक पहुँचाने कि कुछ तो कोशिश करूँ, बस इतना ही कह सकती हूँ की इस समय मैं लिखते-२ अपने अतीत में पहुँच गयी हूँ, खैर चलिए आगे बढ़ते हैं एक सुखद सफ़र के बाद आखिर हम अब प्रशांति निलियम (बाबा का निवास स्थान(आश्रम)) के गेट के सामने पहुँच गए, अभी सुबह के पौने आठं बजे थे और तभी देखा एक लम्बी क़तर लोगों की लगी थी जिसमे अचानक हलचल हो रही थी मगर हमने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और निलियम के गेट के सामने वाले होटल में एक कमरा रुकने के लिए पूछने लगे और भाग्य से एक मिल भी गया, अब हमने सोचा चलो स्नान आदि से निवृत्त हो कर बाबा के दर्शनो को जायेंगे मगर तभी होटल के मेनेजर ने कहा जाइए बाबा आगये हैं दर्शन कर लीजिये हमने कहा अभी तो सफ़र से आये हैं ऐसे कैसे जाएँ, मगर उन्होंने कहा आप का भाग्य अच्छा है की बाबा दर्शनो के लिए आगये हैं जल्दी जाइए, अब तो हमने अपना सामान काउंटर पे ही छोड़ा और भाग लिए अंदर कि तरफ जाने के लिए, पहले सिक्यूरिटी चेक्किंग होती है तभी जाने को मिलता है उसमे थोडा समय लगा मगर हम फिर जब तक साधना हाल तक पहुँच गेट बंद हो गया अब हम दूसरे गेट के पास पहुंचे जहाँ पर एक कारसेवक लोगों को अन्दर जाने से रोक रहा था, मैंने देखा वो खुद भी उनके दर्शनो में लगा हुआ था मैंने उससे कहा की हमे भी दर्शन करने दे तो उसने जगह बना दी अब बाबा साफ़ दिख रहे थे, हम तो रोमांचित थे आँखों से आंसू अनायास ही निकले जारहे थे, क्या एहसास था वो बता नहीं सकती बस अनुभव ही कर सकती हूँ, बाबा के पहले दर्शनो का, हमने वहीँ खड़े हो कर बाबा की आरती का लाभ लिया और बस बाबा वापस चले गए, हमने उस कार्यकर्ता को धन्यवाद दिया तो वो पूछने लगा की हम क्या आज ही आये हैं हमने कहा हैं अभी ही पहुंचे हैं, तो वो बोला आपलोग तो बहुत भाग्यशाली हैं जो आते ही बाबा के दर्शन मिल गए मैं तो यहाँ तीन दिनों से दर्शनो को खड़ा हूँ तब कहीं जाकर आज बाबा आये हैं, अब तो हमे होटल के मेनेजर के प्रति भी कृतज्ञता महसूस होने लगी.............और हमने होटल लौट उसे भी धन्यवाद दिया, और बाबा का अगला दर्शन समय पूछा तो वो बोला भाग्य अच्छा रहा तो बाबा जरूर दर्शन देंगे. -------------------
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